20/11/07

त्वरित टिप्पणियों की टकसाल: हिन्दी कवि सम्मेलन

टिप्पणियों के बेताज बादशाह: श्याम ज्वालामुखी

ब्लाग पर टिप्पणियाँ देने का चलन आम है. मेरी जानकारी में हिन्दी ब्लाग पर टिप्पणियाँ देने मे उड़न तश्तरी वाले कनाडियन भारतीय समीर लाल जी का कोई तोड़ नहीं है. ब्लागर दोस्तों से टिप्पणियों के सन्दर्भ में बात चीत हो तो कई तो अक्सर ये सोंचते दिखते हैं कि समीर जी ने कोई बन्दा रखा हुआ है जो उनकी ओर से तुरत टिप्पणियाँ पोस्ट करता रहता है वर्ना सभी ब्लाग पर समीर जी की पहली टिप्पणी का जादू समझ के बाहर है. लोग समझ नहीं पाते हैं कि समीर जी अगर दिन रात ब्लाग पढते और टिप्पणियाँ ही करते रहते हैं तो वे बाकी काम कब करते होंगे.पर मेरा मानना है कि महान लोगों के काम करने का ढंग भी जुदा होता है. मुझे एक शेर याद आता है

कोई चार दिन की जिन्दगी मे सौ काम करता है
किसी की सौ बरस के जिन्दगी में कुछ नही होता.

मेरी समझ से यही समीर भाई का राज है.

बहरहाल मैं हिन्दी कवि सम्मेलनों की बात करना चाह रहा था. कवि सम्मेलन मे कविता तो महत्वपूर्ण होती ही है. पर श्रोताओं का प्रतिसाद जिस एक चीज पर सबसे ज्यादा मिलती है वह है कवि या संचालक द्वारा कवि सम्मेलन के दौरान के गई त्वरित टिप्पणियाँ.
त्वरित टिप्पणियाँ देने में कई मंचीय हिन्दी कवियों का कोई जवाब नहीं है. वर्तमान में सत्य नारायण सत्तन ,
अशोक चक्रधर , सुभाष काबरा ,अरुण जैमिनी ,कुमार विश्वास, किरण जोशी , सुनील जोगी आदि हिन्दी मंच के उन विरल विभूतियों में से हैं जो घटित हो रही घटनाओं पर अपनी त्वरित टिप्पणियों से श्रोता समूह पर एक जादू सा करते हैं और उन्हें आह्लादित कर देते हैं। स्वर्गीय श्याम तो इसके मास्टर ब्लास्टर थे और टिप्पणियों की वो बारिश करते थे कि लोग गिनती ही नही सुध बुध सब भूल जाते थे.

एक बारमेरी शादी हुई
किसी कवि का एक जुमला जिसे देश के कई कवि ले उड़े वो है”’एक बार’ मेरी शादी हुई” इस जुमले में ‘एक बार’ का जवाब नहीं है. श्रोता बरबस पूछ बैठते हैं –एक बार? और कवि कहता है – जी हाँ आप लोगों की कृपा से अभी तक एक बार ही हुई है.

माइक वाले को एडवांस में पेमेंट
अकसर कवि सम्मेलन मे माइक सिस्टम खराब हो जाता है. ऐसी स्थिति मे एक जुमला लोगों को बहुत गुदगुदाता है. कवि कहता है- लगता है आयोजकों ने माइक वाले को एडवांस में पेमेंट कर दिया है. श्रोताओं क यह टिप्पणी अनायास ही गुदगुदा देती है.

माईक पर गणेश जी खड़े हैं
दिल्ली के अरुण जैमिनी ग्वालियर निवासी प्रदीप चौबे के स्थूल शरीर पर छींटाकसी करते हुए अकसर कहते हैं- ऐसा लग रहा है माएक पर गणेश जी खडे हैं और प्रदीप चौबे आनन फानन अरूण जमिनी को लक्षित करते हुए कहते हैं – बड़े माईक पर गणेश जी खड़े हैं और छोटी माइक पर उनकी सवारी मौजूद है. इस पर श्रोता अनायास खिलखिला उठता है.

कविता वोई और कवि कोई
कवि सम्मेलन की वर्तमान अराजकता पर जिसमें जिसको मौका मिले जिसकी भी कविता हो बिना नाम तक लिए कवि पढ देता है तालियाँ लूट कर ले जात है टिप्पणी करते हुए व्यक्तिगत बातचीत मे श्याम ज्वालामुखी कहा करते थे. पहले के जमाने मे कवि सम्मेलन में वोई कवि और वोई कविता हुआ करती थी और अब कविता वोई और कवि कोई.

बिहारी आदमी की ताकत
पिछले दिनों माँ सरस्वती की कृपा से एक ऐसी ही टिप्पणी मेरे मुँह से भी निकली. हुआ यों के दादर में एक कवि सम्मेलन था. युगराज जैन बतौर संचालक निमंत्रित थे. कवि गण थे- महेश दूबे, सुरेश मिश्रा, अनिल मिश्र, मोतीलाल श्रीवास्तव, शिखा पांडेय और मैं खुद. युगराज भाई ट्रैफिक में कहीं फंसे हुए थे और आयोजक कार्यक्रम शुरू करने को आमादा हो रहे थे. आखिरकार सुरेश मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन शुरू किया और मोतीलालजी को काव्यपाठ के लिए खड़ा कर दिया. उनके काव्यपाठ के उपरांत मुझे खड़ा करने से पहले मेरे राज्य बिहार की काफी ‘तारीफ’ की और यहाँ तक कहा कि जो तालियाँ नहीं बजायेगा उस श्रोता का अगला जन्म भी बिहार में होगा. पर इसी बीच मूल संचालक युगराज जैन पधार चुके थे. सुरेश मिश्रा ने युगराज जी को मंच पर बुलाया और संचालन का भार उन्हे सौपते हुए खुद कवियों के बीच स्थापित हो गये. सामने श्रोताओं के बीच महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपा शंकर सिंह और वरिष्ट पत्रकार नन्द किशोर नौटियाल भी मौजूद थे. मैं माईक पर आया और पहला ही वाक्य मेरी कंढ से फूटा- आपको बिहारी आदमी की ताकत का अन्दाजा इसी से हो गया होगा कि उसके आने से पहले ही आदमी अपनी गद्दी छोड कर दूसरे को सौंप देता है. श्रोताओं की वह हंसी और उनके हाथ की वो तालियाँ .अहा हा क्या बताउँ ? मैं देर तक उस नशे मे रहा.

2/11/07

रोजगार ढूंढना भी एक रोजगार है

आजकल बेरोजगारीका यह आलम है कि रोजगार दफ्तर भी अब बेरोजगार पडॆ हैं . बल्कि लेटे - लेटेकराह रहे हैं. पहले एक - आध बेरोजगार कहीं से घूमता - भटकता दफ्तर मे आ जाता था कि मुझे रोजगार दो. तो दफ्तर वाले उसे समझाते थे कि फलाँ फार्म भर दो, ढिकाँ जगह जमा करा दो. फिर जब तुम्हे खबर देंगे तो वहाँ जाकर ज्वायन कर लेना . पर धीरे - धीरेलोगो को पता लग गया कि फलाँ फार्म भरकर ढिकाँ जगह जमा कर देने भर से कुछ होना जाना नही है तो लोगो ने उस मन्दिर की राह जाकर सिर पटकना बन्द कर दिया.


बड़े बूढे कहते हैं पहले रोजगारदफ्तर वाले गली - गलीघूमते थेऔर ढूँढते रहते थे कि किसे रोजगार दिया जाये ? कोई जरा सा योग्य मानुस दिखा नहीं कि उसे पकड़ कर बिठा देते थे कि भैयायहाँनौकरी करनी पड़ेगीऔर आदमी मजबूरी मे काम करने लगता था. पर अब वो दिन हवा हुए और नौकरी देने वाले पकड़ पकड़ करलोगों को स्वैच्छिक अवकाश पर जाने के लिए मना रहे हैं. और जो नहीं मान रहे उन्हें धक्के देकर बाहर कर रहे हैं. जो लोग कम्प्यूटर बाबा की लाठी टेकते हुए जर्मनी और अमेरीका एक्स्पोर्ट हो गये थे , वे भी वापस आकर देश मे चौथाई तनखाह पर रोजगार तलाश रहे हैं


देश के प्रधान मंत्री ने किसी दिन एक फाइव स्टार रिसोर्ट मे बैढकर चिंतन कियातो बेरोजगारी की हालतदेखकरवे द्रवित हो गये .जी मे तो आया कि फटाफ़ट पूर्व प्रधान मंत्रियों की तर्ज पर दो - चार कवितायें लिख डालें . पर कुछ सोच कर रह गये और सीधे यही घोषणाकर दी कि सरकार एक करोड़ लोगो को रोजगार देगी. बाद मे लोगो ने पूछा कि सरकार के उस वायदे का क्या हुआ? इस बात पर सरकार भन्ना गई. उसका भन्नाना भे स्वाभाविक है. अब अकेली सरकार क्या क्या करे बेचारी.


वह नदियों को आपस मे जोडे या लोगों को. वह समन्दर के अन्दर सेतु की रक्षा करे या अपनी. वह बैंकों की ब्याज दर घटाने मे समय लगाये या बेरोजगारी घटाये. वह अयोध्या मे मन्दिरबनाये. ये आपके भुक्खड पेट की आग बुझाये. वह करोड पति क्रिकेट खिलाडियों को टैक्स मे रियायत दे या पिद्दी जनता की कोटरो मे धंसी आँखे निहारे. अब समस्याओं पर समस्यायेंहै . पाकिस्तान है . कश्मीर है. बाँगला देशी है. नये राज्यो की डिमांड है.परमाणु समझौते हैं.


गजब के हो तुम भी. यहाँ हम कितनी बड़ी बड़ी समस्याओं से पंजा लडा रहे हैं और तुम हो कि आ गये कमीज ऊपर उठाये अपना पिचका पेट दिखाने. हम यहाँराज्यों की सरकारें गिराने - बनाने मे लगे हुए है और तुम आ गये मुँह उठाये कि खाना चाहिए.


वहाँ हम कुर्सी के इतनी बडी लड़ाई लड़ रहे हैं और एक तुमहो कि जिन्दगीकी जंग से ही नही निकल पा रहे हो.. लानत है तुम पर.वर्ल्ड वार के बजायघर वार की चिंता मे डूबउतरा रहे हो. तुम क्या अकेले हो,जो बेरोजगार हो? चीन अमेरीका , जापान कहाँनहीं है बेरोजगारी? लन्दन तक की हर दूसरी दुकान किरायेदार के लिए खाली पडी है मुँह बाये हुए.


अरे काम नही है तो काम ढूँढो. सरकार अगर लोगों को काम देने लगी तो खुद क्या काम करेगी? अरे जो वीर पुरूष हैं, उन्हे क्या काम की कमी है? लाख बेरोजगारी है पर करने वालों को काम की कमी है क्या?. आँखखोल कर देखो , पढे लिखे होने का इतना तो उपयोग करो. अनपढ किसानों तक को देखो, कुछ न कुछ करते ही रहते है. कपास गन्ना बोते है और उससे फुर्सतमिलती है तो कर्ज लेने के लिए साहूकारों के चक्कर लगातेहैं. इन सबसे समय़ मिलता है तो सल्फास वगैरह का स्वाद चखते है और आत्म हत्या भी करते रहते हैं.


जिनके दिल मे हिम्मत होती है, वे मन्दी का रोना नही रोते. अकल वाले कैसे भी पैसाबना लेते हैं. मुफत मे मिली किडनी भी हजारों मे सेल करते है. इसलिए बेरोजगारी का रोना मत रो प्यारे क्योंकि रोजगार ढूँढना भी रोजगार है. इसीलिए जोर से लगे रहो.