टिप्पणियों के बेताज बादशाह: श्याम ज्वालामुखी
कोई चार दिन की जिन्दगी मे सौ काम करता है
किसी की सौ बरस के जिन्दगी में कुछ नही होता.
मेरी समझ से यही समीर भाई का राज है.
त्वरित टिप्पणियाँ देने में कई मंचीय हिन्दी कवियों का कोई जवाब नहीं है. वर्तमान में सत्य नारायण सत्तन , अशोक चक्रधर , सुभाष काबरा ,अरुण जैमिनी ,कुमार विश्वास, किरण जोशी , सुनील जोगी आदि हिन्दी मंच के उन विरल विभूतियों में से हैं जो घटित हो रही घटनाओं पर अपनी त्वरित टिप्पणियों से श्रोता समूह पर एक जादू सा करते हैं और उन्हें आह्लादित कर देते हैं। स्वर्गीय श्याम तो इसके मास्टर ब्लास्टर थे और टिप्पणियों की वो बारिश करते थे कि लोग गिनती ही नही सुध बुध सब भूल जाते थे.
‘एक बार’ मेरी शादी हुई’
किसी कवि का एक जुमला जिसे देश के कई कवि ले उड़े वो है”’एक बार’ मेरी शादी हुई” इस जुमले में ‘एक बार’ का जवाब नहीं है. श्रोता बरबस पूछ बैठते हैं –एक बार? और कवि कहता है – जी हाँ आप लोगों की कृपा से अभी तक एक बार ही हुई है.माइक वाले को एडवांस में पेमेंट
अकसर कवि सम्मेलन मे माइक सिस्टम खराब हो जाता है. ऐसी स्थिति मे एक जुमला लोगों को बहुत गुदगुदाता है. कवि कहता है- लगता है आयोजकों ने माइक वाले को एडवांस में पेमेंट कर दिया है. श्रोताओं क यह टिप्पणी अनायास ही गुदगुदा देती है.माईक पर गणेश जी खड़े हैं
दिल्ली के अरुण जैमिनी ग्वालियर निवासी प्रदीप चौबे के स्थूल शरीर पर छींटाकसी करते हुए अकसर कहते हैं- ऐसा लग रहा है माएक पर गणेश जी खडे हैं और प्रदीप चौबे आनन फानन अरूण जमिनी को लक्षित करते हुए कहते हैं – बड़े माईक पर गणेश जी खड़े हैं और छोटी माइक पर उनकी सवारी मौजूद है. इस पर श्रोता अनायास खिलखिला उठता है.कविता वोई और कवि कोई
कवि सम्मेलन की वर्तमान अराजकता पर जिसमें जिसको मौका मिले जिसकी भी कविता हो बिना नाम तक लिए कवि पढ देता है तालियाँ लूट कर ले जात है टिप्पणी करते हुए व्यक्तिगत बातचीत मे श्याम ज्वालामुखी कहा करते थे. पहले के जमाने मे कवि सम्मेलन में वोई कवि और वोई कविता हुआ करती थी और अब कविता वोई और कवि कोई.बिहारी आदमी की ताकत
पिछले दिनों माँ सरस्वती की कृपा से एक ऐसी ही टिप्पणी मेरे मुँह से भी निकली. हुआ यों के दादर में एक कवि सम्मेलन था. युगराज जैन बतौर संचालक निमंत्रित थे. कवि गण थे- महेश दूबे, सुरेश मिश्रा, अनिल मिश्र, मोतीलाल श्रीवास्तव, शिखा पांडेय और मैं खुद. युगराज भाई ट्रैफिक में कहीं फंसे हुए थे और आयोजक कार्यक्रम शुरू करने को आमादा हो रहे थे. आखिरकार सुरेश मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन शुरू किया और मोतीलालजी को काव्यपाठ के लिए खड़ा कर दिया. उनके काव्यपाठ के उपरांत मुझे खड़ा करने से पहले मेरे राज्य बिहार की काफी ‘तारीफ’ की और यहाँ तक कहा कि जो तालियाँ नहीं बजायेगा उस श्रोता का अगला जन्म भी बिहार में होगा. पर इसी बीच मूल संचालक युगराज जैन पधार चुके थे. सुरेश मिश्रा ने युगराज जी को मंच पर बुलाया और संचालन का भार उन्हे सौपते हुए खुद कवियों के बीच स्थापित हो गये. सामने श्रोताओं के बीच महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपा शंकर सिंह और वरिष्ट पत्रकार नन्द किशोर नौटियाल भी मौजूद थे. मैं माईक पर आया और पहला ही वाक्य मेरी कंढ से फूटा- आपको बिहारी आदमी की ताकत का अन्दाजा इसी से हो गया होगा कि उसके आने से पहले ही आदमी अपनी गद्दी छोड कर दूसरे को सौंप देता है. श्रोताओं की वह हंसी और उनके हाथ की वो तालियाँ .अहा हा क्या बताउँ ? मैं देर तक उस नशे मे रहा.
7 टिप्पणियां:
संचालक और श्रोताओं, दोनों के लिए ये टिप्पणियां टानिक का काम करती हैं. मुझे याद है, एक सम्मेलन का संचालन अशोक चक्रधर जी कर रहे थे. उन्होंने के पी सक्सेना जी को आमंत्रित करते हुए कहा,
अब मैं जिस कवि को बुला रहा हूँ
उसके दाएं कवि है, बायें महिला
एक सरल है, एक सघन
उसमें दोनों की समानता
कहूं उसे जड़ या चेतन
सक्सेना जी के बायें सरोजिनी प्रीतम बैठी हुई थीं....
भाई आपने तो पूरा का पूरा मजा ही दे दिया कवि सम्मेलन का. बस कविता सुनना रह गया, बाकी का सारा उल्लास तो आपकी लेखनी ने समेत ही लिया.
वैसे एक नेक सलाह है की समीर जी के प्रशंसकों से पंगा न ही लें तो बेहतर रहेगा. उनके चाहने वाले बहुत हैं. बहुतों का तो ब्लॉग महीनों तक समीर लाल जी की एक ही टिपण्णी को रह रह का धन्यवाद करता रहता है.
बहुत सुन्दर। आपने समीर जी के बहाने टिप्पणियों पर अच्छी टिप्पणी की है। बधाई स्वीकारें।
एक रिक्वेस्ट है आपके ब्लॉग का बैकग्राउंड कलर काला होने के कारण लेख पढने में दिक्कत होती है। आशा है इसपर गौर फरमाएंगे।
वैसे टिप्पणियों पर टिप्पणी करना एक अच्छी शुरुआत है , यदि टिप्पणी सकारात्मक हो तब . आज़कल तो लोग एक दूसरे की बखिया उधेरने लगे हैं जो कहीं से भी उचित नही है ! भाई आपने तो इस सन्दर्भ में काफी सूझ-बुझ का परिचय दिया है ,समीर जी के बहाने टिप्पणियों पर अच्छी टिप्पणी की है, बधाईयाँ !
टिपण्णी पर टिपण्णी न होने से टिपण्णी ज्यादा सर चढ़ कर बोलती है . बिहारी ऐसे ही अपनी ताकत दिखाए !
आप की हाजिर जवाबी का तो जवाब नहीं जी, ये अभी अभी पता चला कि आप बिहार से हैं। अब कविता भी तो सुनाइए न जो वहां पढ़ी थी।
आज श्याम ज्वालामुखी जी के बारे में और बुद्धिजीवी शब्द के बारे में नेट पर कुछ कन्टेंट ढूँढ रहा था। आपका यह पोस्ट पकड में आ गया।
मुंबई ब्लास्ट में हम सभी को छोड गये श्याम ज्वालामुखी जी की ही शायद एक लाईन थी जिसमें उन्होंने कहा था - बुद्धिजीवी वो होता है जिसे कि यदि तबेले में कितनी भैंसे हैं गिनने के लिये कहा जाय तो वह पहले भैंसो के पैर गिनेगा और सभी पैरों की कुल संख्या को चार से विभाजित कर भैंसो की संख्या बताएगा ।
मैं इस परिभाषा को याद कर अब भी मन ही मन मुस्कराता हूँ।
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