3/7/07

इंटर नेट को नमस्कार

राजनन्दन सिंह यो कहे तो एक नाम भर है पर नाम एक इंसान का है. हम और इस इसान को ज्यादा दिनों से जानने वाले अधिकतर लोग इन्हे “राजू” के नाम से जानते है. जो इन्हे ज्यादा नहीं जानते हैं वे इन्हे राजनन्दन सिह के नाम से जानते है. शाहरूख खान की फिल्म “ राजू बन गया जेंटल मैंन “ याद आ जाती है. पर ये भाई साहब शुरू से ही जेंटल मैन् थे और वाकई के जेंटल मैन थे.फिल्मी जेंटल मैन् नहीं. हमारे गाँव में सीतामढी में इनकी ननिहाल थी. और ये ज्यादातर अपने नाना के घर रहाते थे और पढाई करते थे. हम लोग साथ साथ नदी में पेड़ से छलांग लगाते थे. नहाते थे. तैरते थे. नाव से स्कूल जाया करते थे. और जाने क्या क्या किया करते थे. दिल्ली में रहने के दौरान मुझे एक निजी चैनल के लिए कविता पर आधारित एक कार्यक्रम के संचालन का मौका मिला तो मैने इन्हे जबरदस्ती कवि बनाया. क्योंकि अच्छे कवियों को लाने की जिम्मेदारी भी मेरी थी.इन्होने तीन चार एपिसोड में शिरकत की. फिर मैं मुम्बई आ गया , तो सम्पर्क टूट सा गया. पिछले दिनो अचानक मेल वाँक्स में एक मेल दिखा और खोलने पर पाया कि ये वही राजू भाई है और अब चीन के एक शहर में एक कम्पनी में फैब्रिक क्वालिटी कंट्रोलर के रूप में कार्यरत है. उनका मेल पठ कर मैने इंटर नेट को नमस्कार किया जिंसने दूरियाँ मिटा दी है. उन्होने अनुभूति साईट पर मेरी रचनाये देखी और प्रसन्न हुए और फिर होमपेज सर्च किया और मेल मेरे मेल बाँक्स में. तो साहब राजू भाई ने इसी इंटर नेट की महिमा और महत्व पर एक गजलनुमा सा कुछ रचा और मुझे कहा कि एक तुकबन्दी सी की है. वो चीज है क्या ये आप देखिए और मुझे बताईए. जी चाहे तो उन्हें भी बताईए. उनका पता है. बस यहाँ क्लिक कीजिए गज़ल नही अब ओठ हिलते हैं नही आवज होती है उंगुलियां बातें करती हैं दिल कि बात होती है महीनों देखा करते थे जहाँ हम डाकिये की राह वहाँ अब डाक लहरों से पल-पल की बात होती है हम कितनी दूर बैठे हैं नहीं मतलब इन बातों का हवा में बोलते है हम हवा में बात होती है कबूत्तर से कंप्यूटर तक पहुँचा ये सिलसिला कैसे कहाँ किसको फूर्सत है सोंचे कैसे बात होती है छुप-छुप के कागज पर लिखना किताबों में चिट्ठी मिलना ये कब की बात है नन्दन और ये क्या बात होती है.

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