वैलेंटाईन डॆ तो पता है न आपको. पहले मुझे भी कहाँ मालूम था. बरसों पहले इसके बारे में बी बी सी रेडियो पर सुना था तब जाकर इसके बारे में जानकारी मिली थी. उस वक्त अपने देश में इसे न तो इस तरह धूम धाम से मनाने का प्रचलन था और न ही इसके घोर विरोध का. आज ये सब जोरो पर है. कभी कभी लगता है ट्रेन कई स्टेशन पार कर चुकी है और उसे पकड़ना बिल्कुल मुश्किल है. एक कविता प्रस्तुत है जो कैसे लिखी गई ये तो एक रहस्य है. पर कभी न कभी बताउंगा जरूर. ये वादा है आप सबसे. अगर आप् अपनी प्रतिक्रिया मुझसे बतायेंगे मुझे बुरा बिल्कुल भी नहीं लगेगा.
कौन हो तुम् ?
जो मेरे दिलो- दिमाग पर
इस तरह छा गई हो कौन हो
तुम जो इस तरह चुपके से
मेरी जिन्दगी में आ गई हो
कभी दूर लगती हो, बहुत ............................ दूर
कभी पास लगती हो, एकदम पास
पल में होता हूँ खुश पल में उदास्
हरी घास और हरी हो गई है
और नीला आसमान
और भी नीला हो गया है
फिर भी कुछ है जो खो गया है
कौन हो तुम
जो मेरी नींद् उड़ाती हो
तुम जो मेरा चैन चुराती हो
तुम जो मेरी धड़कन में समा गई हो
तुम जो इस तरह् चुपके से
मेरी जिन्दगी में आ गई हो
कौन हो?
कौन हो तुम?
1 टिप्पणी:
तो ठीक है, हमारा भी वादा रहा - जब आप बताएंगे तब हम टिप्पणी करेंगे.
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