15/7/07

दोस्तो

ठंडे बस्ते से निकाल कर एक लघु कथा लाया हूँ . एक जमाने में लघु कथा का बड़ा हल्ला था. और जिधर देखिए उधर लघु पत्रिकायें निकला करती थी. बन्दे ने भी सम्वाद नाम से एक हिन्दी लघु पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन कुछ साल तक बिहार के सीतामढी जिले से किया था. कुछ लोगों का कहना है कि जो कहानी लिखने का धीरज नहीं रखते वे लघुकथा लिख कर काम चलाते हैं. अहर इस हिसाब से सोचे तो जिसमे महाकाव्य लिखने की योग्यता या धीरज नहीं है वे छोटी छोटी कविताये लिख कर कवि बन जाते है. खैर प्रस्तुत है एक लघुकथा.

भाई-भाई

बारिश हो रही थी और मोहन अपने कमरे में बैठा पढ़ाई कर रहा था. तभी अचानक कुछ लिखने की जरूरत आ पडी . परंतु कलम के लिए हाथ बढाया तो कलम का कुछ अता- पता नहीं. मन मसोस कर बड़बड़ाते हुए उठना पड़ा.’जरूर यह अशोक की शरारत होगी . जब भी पाता है, उठा लेता है.. फिर कमबख्त लिखता भी तो इतना दबाकर है कि बिना नींब टूटे कोई चारा ही नहीं.

बाहर निकला तो देखा वह अंगूठे पर कलम से रोशनाई लगा-लगा कर कागज पर ठप्पा लगाने में मशगूल है. उसे बहुत क्रोध आया. अब तो यह् कलम को कलम नहीं खिलौना समझने लगा है! उसने धीमे से उसके गाल पर एक चपत लगा दी. फिर क्या था. वह रोता हुआ पिताजी के पास पहुंच गया. और शिकायत करने लगा. माँ भी बिगड़ पड़ी. ‘अरे देख तो जरा. बच्चे ने जरा छू ही दिया तो क्या पहाड़ टूट पड़ा जो मार बैठा.. बुलाहट हुई तो जाकर उसने सारी बातें सीधी- सच्ची सुना दी. वे कान खींचते हुए डांटने लगे, ‘ जाओ अभागे , कुत्ते की तरह अपने में ही लड़ कर मर जाओगे . जब भाई -भाई मिल कर नहीं रह सकते तो फिर क्या कर पाओगे.. दूर हो जाओ मेरी नज़रों से.

वह बाहर निकलने लगा तो पुनः बोले , ‘सुनो बारिश बन्द हो चुकी है, मैं एक काम से जा रहा हूँ , तुम शाम को बाजार से सब्जी ले आना.’

माँ बोली , ‘पहले से तो नहीं जाना था. क्या कोई.......’

हाँ जरा मुक़दमे के सम्बन्ध में एक नये वकील से मिलने जा रहा हूँ अब जाकर पता चलेगा राकेश को कि मैंने भी कोई भेड़ बकरी का दूध नहीं पिया है.

बाजार जाते हुए उसके पाँव मन- मन भर के हो रहे थे क्योंकि राकेश उसके छोटे चाचा जी का नाम है और जमीन का कोई मुकदमा है, जिसके लिए पिताजी महीनों से घर पर वकीलों का अड्डा जमा कर गिटपिट करते रहते है.

1 टिप्पणी:

Sagar Chand Nahar ने कहा…

बहुत बढ़िया कहानी।
॥दस्तक॥