एक चूहे को
मैने चूहेदानी मे पकड़ा
पकडे जाने पर
उसकी छटपटाहट देख
मै भी छटपटा उठा
और चूहेदानी खोल दी
सोंचता हूँ
मैंने चूहे को पकड़ा जरूर
पर आखिर में चूहे ने मुझे पकड लिया
मैने चूहेदानी मे पकड़ा
पकडे जाने पर
उसकी छटपटाहट देख
मै भी छटपटा उठा
और चूहेदानी खोल दी
सोंचता हूँ
मैंने चूहे को पकड़ा जरूर
पर आखिर में चूहे ने मुझे पकड लिया
3 टिप्पणियां:
प्रिय बसंत जी,
चूहा हो या आदमी आज़ादी की खुली हवा में साँस लेना किसको पसंद नहीं. ग़ुलामी की छ्त्पटाहट बड़ी अजीब होती है.
बहुत हृदय स्पर्शी रचना हैं
दीपक भारत दीप
आपकी खासियत है आपकी गहराई... आपकी छोटी सी कविता बहुत कुछ कह जाती है..
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