20/8/07

ये बात भी झूठी है

आप कहते हैं
ये दुनिया झूठी है
यहाँ के लोग झूठे हैं
उनकी बातें झूठी है
फिर ये बात सच्ची है
इसकी क्या गारंटी है
सच तो ये है
कि ये बात भी झूठी है.

5 टिप्‍पणियां:

VIMAL VERMA ने कहा…

भाई क्या बात है?अच्छी कविता लिखते हैं...क्या पता ये भी झूठ हो.. क्या कहते हैं?पहली बार आया,भाया मन को..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत खूब! बहुत लॉजिकल कविता है. हम जैसे कविता न समझने वाले को भी पूरी तरह समझ में आ जाने वाली.
असल में सच या झूठ सापेक्ष हैं या निरपेक्ष - यही तय नहीं हो पाता. हमें तो आपकी कविता ही सच लग रही है.

Reetesh Mukul ने कहा…

इसे कहते हैं, गणित में russell's paradox. कविता सहिये पूछिये तो अच्छी नहीं लगी.

महावीर ने कहा…

यहां हम एक प्रयोगवादी कविता की बात कर रहे हैं ना कि Russell's antinomy की।
आज की कविता जकड़ी हुई बंदिशों से बाहर
स्वच्छंद होकर नए नए प्रयोग में से गुजर कर प्रगति की ओर अग्रसर है।
यदि साहित्य में शमशेर की प्रयोगात्मक कविता को, जिसकी पंक्ति है "मेढ़क पानी झप्प"
(संभवतः१९६४-६५), मान्यता दी गई है तो बसंत आर्य जी का नया प्रयोग निस्संदेह सराहनीय है।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

बेहद सुंदर और सरगर्भीत , अच्छी रचना और अच्छी सोच यदि अच्छी भावनाओं के साथ
परोसी जाए तो होठों से वाह निकलना लाज़मी है. इस क्रम को बनाएँ रखें....../