बहुत खूब! बहुत लॉजिकल कविता है. हम जैसे कविता न समझने वाले को भी पूरी तरह समझ में आ जाने वाली. असल में सच या झूठ सापेक्ष हैं या निरपेक्ष - यही तय नहीं हो पाता. हमें तो आपकी कविता ही सच लग रही है.
यहां हम एक प्रयोगवादी कविता की बात कर रहे हैं ना कि Russell's antinomy की। आज की कविता जकड़ी हुई बंदिशों से बाहर स्वच्छंद होकर नए नए प्रयोग में से गुजर कर प्रगति की ओर अग्रसर है। यदि साहित्य में शमशेर की प्रयोगात्मक कविता को, जिसकी पंक्ति है "मेढ़क पानी झप्प" (संभवतः१९६४-६५), मान्यता दी गई है तो बसंत आर्य जी का नया प्रयोग निस्संदेह सराहनीय है।
5 टिप्पणियां:
भाई क्या बात है?अच्छी कविता लिखते हैं...क्या पता ये भी झूठ हो.. क्या कहते हैं?पहली बार आया,भाया मन को..
बहुत खूब! बहुत लॉजिकल कविता है. हम जैसे कविता न समझने वाले को भी पूरी तरह समझ में आ जाने वाली.
असल में सच या झूठ सापेक्ष हैं या निरपेक्ष - यही तय नहीं हो पाता. हमें तो आपकी कविता ही सच लग रही है.
इसे कहते हैं, गणित में russell's paradox. कविता सहिये पूछिये तो अच्छी नहीं लगी.
यहां हम एक प्रयोगवादी कविता की बात कर रहे हैं ना कि Russell's antinomy की।
आज की कविता जकड़ी हुई बंदिशों से बाहर
स्वच्छंद होकर नए नए प्रयोग में से गुजर कर प्रगति की ओर अग्रसर है।
यदि साहित्य में शमशेर की प्रयोगात्मक कविता को, जिसकी पंक्ति है "मेढ़क पानी झप्प"
(संभवतः१९६४-६५), मान्यता दी गई है तो बसंत आर्य जी का नया प्रयोग निस्संदेह सराहनीय है।
बेहद सुंदर और सरगर्भीत , अच्छी रचना और अच्छी सोच यदि अच्छी भावनाओं के साथ
परोसी जाए तो होठों से वाह निकलना लाज़मी है. इस क्रम को बनाएँ रखें....../
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