16/8/07

दूसरा ईसा मसीह


कच्ची नींद से जागता हूँ
काम पे भागता हूँ
यहाँ वहाँ भटकता हूँ
रोज सूली पर लटकता हूँ
सोंचता हूँ

जब हम नहीं रहेंगे
लोग हमें कहीं
दूसरा ईसा मसीह तो नहीं कहेंगे.

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

कोई कहे न कहे, हमारी तरफ से निश्चिंत हो जाओ. हम जरुर कहेंगे. :)

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

भाई बसंत जी,
मैंने काफ़ी क़रीब से आपको देखा हीं हीं,महसूस भी किया है. आप जो हैं बने रहिए,आप ऐसा क्यों सोचते है कि आपके जाने के बाद लोग आपको क्या कहेंगे? ईशा मशीह के समय की प्रस्थितियाँ कुछ और थी, आज की कुछ और है, क्योंकि-
मालूम है हमें, कि-
जबतक आपके पास शेष है
भावनाओं के कुछ रास्ते
नष्ट नहीं हो सकते आप
बालू के घरौंदे की मानिन्द
और मिट भी नहीं सकते
अंडमान की किसी आदिम जनजाति की तरह.
कौन जानता है, कि-
आप न रहने पर लोगों के लिए
बसंत आर्य के रूप में ही किवदंती बन जाएँ?
मेरे दोस्त, बहुत उम्दा लिखते हो, इस क्रम को बनाए रखो कौन जानता है , कल हो न हो.........///

VIMAL VERMA ने कहा…

जज़ब की सोच है...करीब करीब ये सबसे के साथ है... मरने के बाद क्या होता है ये मैं दावे के साथ नही कह सकता.