4/8/07

न हँसे कोई, न मुस्कुराए, बस ठहाका लगाया जाय


ज सुबह सुबह् एक मेल मिला
प्रिय बसंत जी, किसी ने ख़ब ही कहा है- हँसना रवि की प्रथम किरण सा, कानन मेंनवजात शिशु सा . हमारा वर्तमान इतना विचित्र है,की अपनी इस सहज ,सुलभ विशिष्टताको हमने ओढ लियाहै, हर आदमी इतना उदास है,की उसे हँसने के लिए लाखों जतन करनेपड़ते हैं. हँसने के लिए.कोशिश करना इंसान के लिए बहाने ढूँढना या फिर दिखावाके लिए हँसना हमारे व्यक्तित्व केखोखलापन को उजागर करता है. ईश्वर हर जगहइंसानों को जोर -जोर से हिल-हिल कर हँसनेकी कोशिश करते देख वाकई हँसता होगा, क्योंकि ईश्वर तो उदास नहीं हैं. हम उदास हैं.हमारी मशीनरी दिनचर्या ने हमेंचिरचिरा बना दिया है,हम हँसने के लिए वजहढूँढ़ते हैं,यदि ज़िंदगी को कुछ कमगंभीर कर लिया जाये, तो इस अद्भुत आश्चर्य हँसी कोमहसूस कर सकेंगे. आपकाठहाका मेरे शरीर के पोर -पोर को रोमांचित कर गया,बेहद सुंदर प्रस्तुति, बेहदसुंदर संयोजन. कोटिश: बधाइयाँ, इस शेर के साथ
हर शख्स के भीतर इक नयाअहसास जगाया जाय , की उनका आईना पलटकर उन्हें ही दिखाया जाय , मगर यह शर्तहो सबके लिए महफ़िल जमे जब भी- न हँसे कोई, न मुस्कुराए, बस ठहाका लगाया जाय .
आपका- रवीन्द्र प्रभात
फिर तो कई बातें याद आने लगी. उस दिन बड़ी गहमा-गहमी थी उस कालेज के प्रांगण में. मुझे शहर के कवि मित्र राम चन्द्र विद्रोही वहाँ घसीट कर ले गये थे. एक युवा कवि रवीन्द्र प्रभात् -की काव्य पुस्तक का विमोचन था उस दिन. ये सुन्दर नौजवान उस कालेज में भूगोल पढ़ाता था. शहर के सारे गण्यमान्य लोग वहाँ उपस्थित थे. नेता थे, मंत्री थे. प्रोफेसर थे , प्रिंसपल थे, छात्र थे, छात्रायें थी. मतलब जो भी हो सकते थे वहाँ थे. ये शख्स कवि के रूप में कितना लोकप्रिय था ये तो पता नहीं परंतु एक इंसान के रूप में गजब रूप से पोपुलर है इसका भरोसा हो गया. मैंने भी बधाईयाँ दी. प्रोग्राम के बाद घर आ गये. अगले दिन या शायद अगले के अगले दिन घर के बाहर से रिक्शे में बैठे एक व्यक्ति ने पुकारा. देखा जनाब मुझ से मिलने मेरे घर आये हैं. मैंने कहा – रिक्शा छोड़ दीजिए. बोले नहीं गरीब बेचारा कहाँ जायेगा और रिक्शे वाला दो घंटे तक बाहर इंतजार करता रहा. दरअसल ये उनकी अदा था. वे कभी भी पूरा रिक्शा करते थे. मतलब कोई शेयरिंग नहीं. शहर भर में उससे चक्कर लगाया करते थे. रात को रिक्शे वाले को एक मुश्त पैसा दे देते थे. रिक्शा वाला खुश कि इतना तो कितना भी भार ढोते तो नहीं मिलने वाला था. बाद में मुझे पता चला कि भाई साहब को शहर का हर रिक्शा वाला जानता पहचानता था और उन्हें देख कर चाहता था कि आज का दिन उनका रिक्शा पवित्र हो तो शाम का प्रसाद पाकर मजा आये.
अब एक मजे की बात बनाये कि इनकी हस्तलिपि इतनी अच्छी है कि इनका एक हाथ से लिखा पत्र पढ़ कर सहारा ग्रुप् के एक उच्च और पारखी अधिकारी ने इन्हें लखनऊ बुलाया और कहा इतने अच्छे हस्तलिपि वाले व्यक्ति को हमारी कम्पनी में होना चाहिए और अच्छी खासी पगार वाली नौकरी दे दी. वैसे ये अलग बात है कि उस कम्पनी में सारे पत्र व्यवहार कम्प्यूटर से ही होटल है. तो अब कवि जी लखनऊ में अपने मकान में रहते है. अपनी गाड़ी में अपनी बीवी और अपने बच्चो के साथ लखनऊ की गलियों में घूमते है. मांस मछली से परहेज नहीं करते और लोगों को दारू शारू पिला कर नाली में गिराने में आगे रहते है . मतलब पोंगा पंथी नहीं है इनकी एक खास बात है कि जो भी इनसे एक बार मिलता है उसे ये अपना बना लेते है. चाहिए तो कभी आजमा कर देख लीजिए.

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Dear Aryaji

Hum to bus yahi dua karte hai ki aap apne naam ko sarthak karte hue sab ke jeevan me Basant hi basant felate jaayee. Jitne hum aap ko jante pehchante hai hame yakin hai aap sab k jeevan me hasi khushi felate rahenge aur aap har koi k jeevan me sada k liye basant ugate jayenge

regards

Nilay Wankawala

बेनामी ने कहा…

प्रिय बसंत जी,
आज मैं जीवन के जिन सात आश्चर्यों की चर्चा करने जा रहा हूं उन्हीं सात आश्चर्यों में से
एक है हँसना और हँसने का हीं उत्कृष्ट रूप है ठहाका. यही दुआ है कि ठहाका के मध्यम
से मिलने- मिलाने का यह माध्यम बना रहे.../
आपने मेरे बारे में जो लिखा है, उतना सौभाग्यशाली मैं हूं नहीं, यह तो आपकी
महानता है जनाब, जो इतना महसूस किया......
पिछले दिनों ताज को दुनिया के सात अजूबों में शुमार कराने के लिए भारत के लोगों ने काफ़ी
मशक्कत क़ी. अच्छी बात है, पर यदि हम अपने भीतर की यात्रा करते हुए जीवन के सात
अजूबों का एहसास कर सकें , तो इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन बहुत हीं ख़ूबसूरत और
सरगर्भीत हो जाएगा . अब आप कहेंगे कि जीवन के सात अजूबें कौन से हैं? तो मेरा जबाब
यही होगा कि वह है-देखना,सुनना, स्पर्श करना, महसूस करना,हँसना,रोना और प्यार करना.
चौंक गये क्या जनाब ? चौंकिए मत, यही सच है.
इस दुनिया को देख पाना एक सुखद आश्चर्य है, जिसने दुनिया को विविधता का रंग
दिया, उसी ने हमें देखने की शक्ति दी .हम हिमालय की उँचाई को देख सकते हैं, ताजमहल
की ख़ूबसूरती को निहार सकतें हैं, वहीं सड़क पर पड़े कचडे को भी देखते हैं.हमारे पास
अंदर झाँकने की शक्ति भी है, जिससे हमें अपने भीतर मौजूद असीमित संभावनाएँ दिखती
हैं,जो दुनिया को ख़ूबसूरत बना सके.उसीप्रकार हमारे पास सुनने की अदभुत क्षमता है.
हम वादलों के अट्टहास सुन सकते हैं, तो चिड़ियों के कलरव भी, हम दुनिया की भी
सुनते हैं और अपने मन की आवाज़ को भी.इसलिए सुनना जीवन का दूसरा सबसे बड़ा
आश्चर्य है.
मनुष्य का जीवन बड़ा क़ीमती है, पर सुनना नही आया तो जीवन का कोई उपयोग नहीं.राह
पर चलते हुए हर राहगीर को सड़क पर गिरे सिक्के का स्वर अचानक अचम्भित करता है,
किंतु वहीं राह के किनारे किसी घायल की व्यथा के मौन स्वर सुनने का भान शायद किसी-
किसी को प्राप्त है. सुनना एक ऐसी पारसमनी है, जो अंदर से बाहर तक मनुष्य को स्वर्णयुक्त
बना देता है. छूना अर्थात स्पर्श करना एक ऐसी शक्ति है, जो व्यक्ति के भीतर उर्जा का संचरण
करती है.यदि कोई दुखी है, पीड़ित है और उसके कंधे पर हाथ रख दिया जाए, तो निश्चित रूप
से उसकी पीड़ा कम हो जाएगी. रोते हुए बच्चे को अचानक माँ द्वारा गोद उठा लेना और संसपर्श
का एहसास पाकर बच्चे का चूप हो जाना यह दर्शाता है कि स्पर्श हमारा भावनात्मक बल है.
इसीप्रकार महसूस करना अर्थात भावनात्मक होना मनुष्य की आंतरिक जीवन दृष्टि है, जहाँ
आकार लेता है जीवन मूल्यों का सह अस्तित्व, क्योंकि कहा गया है कि जिससे हमारी
भावनाएँ जुड़ जाती हैं, उसकी प्रशंसा करने अथवा प्रशंसा सुनने में भावनात्मक संतुष्टि मिलती
है. यही है जीवन का चौथा आश्चर्य. उसीप्रकार हँसना प्रकृति के द्वारा प्रदत एक स्वाभाविक
प्रक्रिया है. हँसना एक चमत्कार है, आश्चर्य है, क्योंकि हँसने से जहाँ ज़ींदगी के स्वरूप और
उद्देश्य का भाव प्रकट होता वहीं नीरसता , उदासीनता और दुख का भाव नष्ट करते हुए
आनन्द्परक वातावरण का निर्माण करता है. यह भाव केवल मनुष्य में ही होता है.उसीप्रकार
जब आदमी रोता है तब सबसे ज़्यादा सच्चा होता है, उजला होता है. रोना कायरता नहीं है,
खूद का सामना करने की ताक़त की निशानी है. राष्ट्रकवि दिनकर ने कहा है, कि जिसका
पुण्य प्रबल होता है वही अपने आँसुओं से धूलता है. इसलिए रोना छठा सबसे बड़ा आश्चर्य
है. कहा गया है, कि लगाव, दोस्ती,इश्क़,ममत्व और भक्ति हमारी पाँच उंगलियाँ है,. जो
जीवन की मुट्ठि को मज़बूत करती है. किसी कठिनाई और समाधान के बीच उतनी हीं
दूरी है, जितनी दूरी हमारे घूटनों और फ़र्श में है, जो घुटने मोड़कर ईश्वर के सामने झुकता
है, वह हर मुश्किल का सामना करने की शक्ति पा लेता है. यही है प्यार, जो जीवन का
सातवाँ आश्चर्य है. शायद हमारी बातों से सहमत हो गये होंगे आप?