5/1/10

कौन हो तुम जो सपनो मे छेड जाती हो !!!!!

(एक बार फिर पूरानी यादे जो अपके सामने प्रस्तुत है)

कौन हो तुम
जो अकसर
मेरी यादो के झरोखे से
झांक झांक जाती हो
और घूंघट उठाते ही
दूर दूर तक भी
कही नजर नही आती हो
अजीब बात है यह
कि जब बन्दकर देता हूँ
दरवाजे खिड्कियाँ सब
तभी तुम आती हो
चुपके चुपके
पता नही किधर से?
सन्नाटे के क्षणो मे
बरबस ही
गूँज जाती है एक आवाज
वह तेरी ही....
फिर लम्हो ही लम्हो मे
उठता है एक दर्द
जो मीठा होता है
एक तुफान सा उठता है !