26/7/07

मेरा कुत्ता

मेरा कुत्ता नेता हो गया है
लोगों का चहेता हो गया है
जहाँ भी जाये
जुगत भिड़ा लेता है
भाषण देने लगे
तो जमा देता है
कुत्ता मेरा है --
पर काम आपके भी आ सकता है
मसलन मनचाही जगह
आपकी ट्रांसफर करा सकता है
या पड़ोसियों को
झूठे मुकदमे में फँसा सकता है
आप कहेंगे
फाँक रहा है
इसका कुत्ता है न
इसीलिये हाँक रहा है
मगर झूठी बात नहीं करता हूँ
ऐसा इसीलिए कहता हूँ
क्योंकि पहले मेरा कुत्ता
खाना खाने के बाद
पाँच घंटे के लिए गायब हो जाता था
फिर वह पाँच पाँच हफ़्‍ते पर आने लगा
और कुछ दिनों बाद तो
पाँच महीने पर आकर खाने लगा
और अब तो बिल्कुल गजब ढाता है
खाना खाने के बाद
पाँच साल के लिए गायब हो जाता है
बीच में एक बार भी नहीं आता है
इसीलिए तो कहता हूँ
मेरा कुत्ता नेता हो गया है
लोगों का चहेता हो गया है

नेता और वसीयत

एक पागल कुत्ते ने


एक कठोर दिल नेता के


मुलायम पृष्ठ भाग को नोचा


तो नेता तो अब जरूर मर जायेगा


ऐसा लोगों ने सोंचा


लोग देखने के लिए गये कि


कुत्ता काटा नेता कैसा दिख रहा है


पर अरे ये क्या


नेता तो आराम से कुर्सी पर बैठा


कागज कलम लिए कुछ लिख रहा है


लोगों ने कहा- नेताजी


क्या वसीयत लिख रहे हो


नेता बोला- वसीयत लिख कर वसीयत क्या मैं चाटूंगा


अरे मैं तो लिस्ट बना रहा हूँ


कि कल सुबह किनको किनको काटूँगा.

24/7/07

आईना मिलते ही चेहरा खो जाता है.

हम जिन्दगी में जाने क्या क्या पाने की ख्वाहिश रखते थै. उस जाने क्या क्या को पाने में एक दिन हम पाते हैं कि हम खुद खो गये हैं. कुछ और थे ,कुछ और हो गये हैं. किसी के पास आने में कई दफा हम स्वयं से ही कितने दूर चले जाते है. यही ख्याल आ रह है बार बार कि हम कहाँ से आये और यहाँ किस लिए है . यहाँ से कहाँ जायेंगे. क्या नदी में बहते सूखे पत्ते नहीं है हम. हम पर हमारा वश है क्या? बहुत दिनों बाद एक कविता लिखी आज


आईना


पहले


मेरे पास एक चेहरा था


आईना नहीं था


आईना जुटाने में


चेहरा ही खो गया


अब इस आईने का


मैं क्या करुँ?

23/7/07

लालू यादव ही नहीं , सारे बिहारी चोर हैं

आप डिवाइन इंडिया के चिट्ठाकार दिव्याभ आर्यन से तोपरिचित होंगे. बिहार के रहने वाले है, परहैं जरा सेंटी किस्म के आदमी. आधी उम्र तो बीत चुकी है जनाब की मगर, छोटी छोटी बातों का बुरा मान जाते हैं. जैसे कोई साँवली लड़की काली कह दिये जाने पर कुनमुना जाती है. मतलब अभी चिकने घडे नहीं हुए है अभी कि बिना असर डाले पानी नीचे बह जाये. पिछले दिनो किसी ने मुम्बई की लोकल ट्रेन में एक नया सत्यउनके सामने रख दिया- एक बिहारी सौ बीमारी . बिहारी होने के कारण आहत हो गये. इस देश में तो एक मेढक के टाँगमें चार धागा बांध कर ग्यारह बच्चे खींचते हैं और मजा लेते है:-). यही बच्चे बडे तो हो जाते है पर उनकी आदत नहीं जाती. मेढक नहीं मिलता है तो आदमी की टाँग में रस्सी बन्ध कर खींचते है.


मैं दिव्याभ आर्यन से मिला तो नहीं हूँ पर इनके एक छोटे भाई है जिनसे मेरी गहरी दोस्ती है. वे इनकी तरह बरास्ता दिल्ली आइ ए एस बगैरह बनने के प्रयास में टाइम खराब किये बिना सीधे मुम्बई आ गये थे.ये आये हैं फिल्मों, टी वी सीरियलों के डाइरेक्टर बनने पर छोटे भाई साहब का किस्सा अलग है. उनको कालेज केबदमाश और नाकारा ळडकों ने एक दिन् इस लिए खूब् मारा कि प्रिंसिपल की लड़की उस पर क्यों मरती है यह उन्हे लाख कोशिश करने पर भी समझ नहीं आ रहा था. जबकि उस लड़की पर डाइरेक्ट हक उस लडके का बनता था जो प्रिसिपल के मकान में बतौर किराये दार रह रहा था, किराया भी ऎडवांस देता था और शाम को बाजार से सब्जी वगैरह भी लाया करता था. तो गुन्डे लफाडियो से पिटाई खा कर इतने आहत हुए कि सीधे शहर के निकटतम रेल वे स्टेशनपर पहुँचे और यह कसम खाकर कि अब तो कुछ बन कर ही वापस आयेंगे सामने जो भी ट्रेन खडी ठीक उसमे सवार हो गये. साथ में थे कुछ कपडे और ढेर सारी कविताऑ की डायरी और कुछ किताबें. छोटे भाई साहब बेहद सम्वेदनशील हैं किंतु सेंटी बिल्कुल नहीं.मुम्बई आकर बहुत् दिनों तक फुटपाथ पर भटकते रहे और ये सोचते रहे कि इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है. एक मशहूर चित्रकार, जिनकी पेंटिंग करोड़ में बिकती है, उसे जावेद अख्तर के पास ले गये. जावेद जी ने कहा- तुम्हारा सर्टिफ़िकेट तो जरूर् नकली होगा. जरूर चोरी करके पास हुए होगे. पढ़ना लिखना आता है? इस तरह् एक कवि ने एक कवि का मुम्बई में जोरदार स्वागत किया. फिर कोई व्यक्ति उन्हें यू पी के एक बिजनेस मैन के पास ले गये. यू पी वाले ने कहा बिहार के हो? अरे सारे बिहारी तो चोर हैं. तो छोटे भाई साहब ने एक किस्सा सुनाया- जब मुम्बई आने के क्रम में ट्रेन में लेटे लेटे लखनऊ में उसकी नींद खुली तो उसके कलाई से घडी नदारद थी जो पिताजी ने दसवी की परीक्षा में अव्वल आने पर पिताजी ने दी थी.. तो यूँ तो सारे बिहारी चोर हैं पर छोटे भाई साहब के जीवन की सबसे पहली चोरी लखनऊ में हुई जो बिहार के बाहर है. मुम्बई पहुंचते ही उनका बैग गायब हो गया और स्टेशन के बाहर निकले तो पर्स का पता न था. ये स्टेशन भी बिहार में नहीं था. छोटे भाई साहब को मेरे एक दोस्त ने क्राफर्ड मार्केट में एक सेठ के यहाँ काम दिलाया. छोटे भाई साहब ने तीन चार महीने सेठ के यहाँ काम किया. उनका स्मगलिंग का धन्धा था. जब छोटे भाई सहब को पता लगा तो अपना दो महीने का वेतन छोड कर भाग निकले. बाद में उस सेठ से मुलाकात हुई तो मैने छोटे भाई साहब के वारे में पूछा. सेठ जी बोले- मैं तो पहले ही जानता था . सारे बिहारी चोर हैं. भाग गया.


तो साहब अगर कोई चोर को चोरी न करने दे , या चोरी करने में साथ न दे और रास्ता नाप ले तो चोर बन जाता है.


लालू यादव ने रेलवे को इसी तरह मुनाफे में पहुंचाया है. जितने सुराखो से चोरी हो रहे थी उन सुराखो को बन्द कर दिया. मगर लोग तो बस् यही कहते है. लालू यादव ही नहीं सारे बिहारी चोर है.


इसी साल नवी मुम्बई के नेरूल उपनगर में बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा और कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. निर्माणाधीन बिहार भवन के प्रांगण में कार्यक्रम था. बिहारी लोगों को जो मिले वही ठगने की कोशिश में रहता है. माइक वाले ने पूरा पेमेंट लेकर भी घटिया साउंड सिस्टम भेजा था . बीच बीच में माईक मायके चला जाता था और कवि गण परेशान हो जाते थे. मंच पर संचालक अनंत श्रीमाली मौजूद थे और साथ में थे दिलदार और हर छे महीने पर कार बदल देने वाले और आज कलस्कोर्पियो में घूम रहेएक मात्र मुम्बईया हिन्दी कवि अरविन्द राही, लाफ्टर चैलेंज और कॉमेडी सर्कस वाले सुनील साँवरा, मुकेश गौतम, राजीव सारस्वत और मैं खुद. माईक बार बार जवाब दे ही रहा था एक बार बिजली भी चली गई. संचालक जी ने कहा अब जब बिजली भी चली गई तोलग रहा है कि हम वाकई कवि सम्मेलन के लिए बिहार आ गये हैं . लोगों ने खूब मजा लिया जिसमे आधे से ज्यादा बिहारी थे. तो भाई साहब बिहारी होते हैं मजा लेने के लिए. चाहे जैसी भी परिस्थिति हो मजा ले लो. दुःखी मत होओ. मैंने कई सारी कविताओं के पहले वही पर लिखी चार पक्तियाँ वही सुनाई जिसके लिए सारे श्रोताओं ने इतनी देर तक और इतनी जोर कीतालिय़ाँ बजाई जैसी मैने कभी नहीं सुनी थी. आप भी मुलाहिजा फरमाईए.


बिहार सिर्फ राज्य नहीं एक तीर्थ धाम है


बुद्ध महावीर सती सीता का वो ग्राम है


मुश्किलों से दो दो हाथ बिहारियों का काम है


चाणक्य चन्द्रगुप्त भी बिहारियों के नाम है


और घाटे वाली रेलगाडी दे रही मुनाफा अब


क्योंकि वहाँ भी बिहार वाले लालू की लगाम है


अरे एक एक बिहारी यहाँ सैकडों पे भारी है


ऐसे वीर बिहारियों को सौ सौ प्रणाम है.

19/7/07

सौ साल पहले मैं कर्जदार था

आपने कभी उधार लिया है. या ऐसे भी पूछा जा सकता है कि आपको कभी किसी ने उधार दिया है. उधारी के बडे किस्से हैं एक आदमी ने ट्रेन में किसी अंजान यात्री से उधार मांगा. अंजान आदमी बोला- आप मुझसे उधार कैसे मांग रहे है मैं तो आपको जानता नहीं, बन्दा बोला- इसी लिए तो आपसे मांग रहा हूँ.जो जानते हैं वो तो देते नहीं है. ऐसे ही एक स्कूल में शिक्षक ने गणित की क्लास में एक लडके से पूछा- मान लो मैने तुम्हारे पिताजी को 1200 रूपये पन्द्रह प्रतिशत ब्याज पर 6 महीने के लिए उधार दिया तो 6 महीने बाद तुम्हारे पिता जी कितना पैसा लौटायेंगे? लड़का बोला- तुम इतना सा गणित भी नहीं जानते. ळडका बोला – मैं गणित बहुत अच्छी तरह जानता हूँ . मगर आप मेरे बाप को नहीं जानते. किसी का लौटाया है जो आपका लौटायेंगे. तो उधार मांगना एक कला है. अगर आपको उधार मिल जाये तो आप सही कलाकार हैं. लेकर कभी न लौटायें तो आप सुपर हिट है. चलिए एक पैरोडी लिजिए. अगर आप बाथरूम टाइप के सिंगर है और इसे गाना चाहते हैं तो मुझे खुशी होगी. अगर रिकार्ड निकलवाना चाहे तो मुझे सूचित करें. पैरोडी मैंने इस तरह लिखी है.
सौ साल पहले मैं कर्जदार था, 2
आज भी हूँ और कल भी रहूंगा
माँ बाप बीवी बच्चों के
सिर का मैं भार था 2
आज भी हू और कल भी रहूंगा. उधार जब कोई मिल जाये
मेरी तबीयत खिल जाती है जब वापस करना हो तो
मेरी नानी मर जाती है
देने वालो का हरदम करता इंतजार था 2
आज भी हू और कल भी करूंगा सौ साल पहले...........
एक वार जो देते फिर
ता उम्र वे रोते हैं
वे जागा करते रातों को
हम चैन से सोते है.
मैं तो पैदाएशी ऐसा होशियार था 2
आज भी हूँ और कल भी रहूंगा
सौ साल पहले...........
इस घर में टी वी ,फ्रीज
और सोफा उधार से है हर हसीन जलवा
और मस्त बहार उधार से है उधार से ही लेने की
सौचता हर बार था 2 आज भी हूँ और कल भी रहूंगा
सौ साल पहले मैं कर्जदार था,

किस्सा अमिताभ बच्चन , रेखा और एक बकरी का

आप कलेक्टर हैं, आपके पिताजी कलेक्टर है या कि आप स्वय कलेक्टर साहब के पिताजी है इससे कोइ फर्क नहीं पड़ता. आप जरूर बहुत बडे तोप होंगे . पर निश्चित रूप से अपने बाथ रूम के अन्दर होंगे . आप जो भी तोप , तमंचा या तलवार हो किंतु अगर आप हिन्दी फिल्मों से वाकिफ हैं तो फिल्म सितारों के प्रति लोगों की दीवानगी से नावाकिफ नहीं होंगे.
एक बूढ़े कलेक्टर साहब मिले. मुँह के दाँत गिर चुके हैं. सेवा से रिटायर्ड हैं और अब पुराने दिनों की यादो की जुगाली करते हुए दिन बिताते है. गर्मी की छुट्टियों में गांव गया था तो उनसे मुलाकात हुई. एक दूसरे से मिलकर हम दोनों अति प्रसन्न हुए. फिल्म, साहित्य और कुल मिलाकर जिंदगी के अनेकानेक पहलुओ पर कई दिनों चर्चा चली. एक दिन उन्होंने एक घटना का जिक्र किया. बोले उमराव जान की शूटिंग लखनऊ में हुई थी. और जब शूटिंग हो रही थी वे तब वहाँ के जिला मजिस्ट्रेट थे. रेखा को उन्होने तब वही साक्षात देखा था और तब से अब तक वह उनकी आँखों के आगे गाहे बगाहे वही बोल बोल कर फुर्र हो जाती है कि दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए . वे शूटिंग के लिए वहाँ लखनऊ आयी थी. उन्होने रेखा के बहुत अनुरोध करने पर उसके साथ अपना एक फोटो भी अपने निजी कैमरे से निकलवाया था ताकि सनद रहे. और जब कैमरा कलेक्टर साहब का अपना था तो जाहिर है फोटोग्राफर भी उनका अपना ही रहा होगा. तो फोटो निकाली साहब के एक परम प्रिय चपरासी ने. जब फोटो साफ कराया गया तो चपरासी की फोटोग्राफी की प्रतिभा और कैमरे की विलक्षण क्वालिटी का पता चला. फोटो में न रेखा थी न कलेक्टर साहब थे. था तो बस आधे फ़ोटो में जमीन थी और आधे में आसमान था. इस तरह शेर गलत साबित हो रहा था कि
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कभी जमीं मिलती है तो आसमां नहीं मिलता
इस तस्वीर में मुकम्मल जहां था , जमीन भी थी और आसमान भी था. बस नहीं था तो कलेक्टर साहब नहीं थे और रेखा नहीं थी. वह तस्वीर उन्होंने बड़े जतन से संभाल कर अपने अलबम में रखी हुई है जिसे देख कर हम भी धन्य हो गए.
मान लीजिए , क्योंकि मानने के अलावा और कोइ उपाय नहीं है. आप आज अमिताभ बच्चन से मिलें उनके साथ एक तस्वीर निकलवाने का सौभाग्य भी आपको प्राप्त हुआ. या तस्वीर भी छोडिये आपने अमिताभ बच्चन का साक्षात दर्शन किया. तो आप जिस दिन मृत्यु शय्या पर भी होंगे और चर्चा चलेगी तो आप झट उठ कर कहेंगे कि आपने अमिताभ बच्चन को करीब से देखा है और उनके साथ आपका फोटो भी है. अपने बेटे , पोते , पोतियों , नातियों , सब को जब जब आपको मौका मिलेगा बतायेंगे कि उनके साथ आपकी तस्वीर है .
मैने मुम्बई के एक फर्निचर शाँप में आमिर खान को देखा. लडकियाँ आस पास मडरा रही थी और लडके और बूढे लडकियों के आस पास मडरा रहे थे. तभी एक मुसलिम लड़की ने आमिर को देखा और देखते ही चिल्लायी – आ..........मिर भा..........ई........फिर चिल्लाती हुई उससे लिपटने के लिए उसकी और दौडती हुई भागी. मगर हाय रे किस्मत और हाय रे किस्मत की मार ! बेरहम सिक्यूरिटी वालों ने इस बिछडी हुई बहन को अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहले ही रोक लिया. हालांकि बहन जी अपनी प्रूरी ताकत के साथ सिक्यूरिटी वालों से जूझ रही थी और लगातार आमिर भाई आमिर भाई चिल्लाये जा रही थी. शायद इसी का असर हुआ कि किसी तरह आमिर ने खुद आगे बढ़ कर उससे हाथ मिलाया और हाथ भी क्या मिलाया दोनो की दो- दो उंगलियां 1/10 सेंकेंड के लिए एक दूसरे को छू गयी होगी . और इतने में ही दोनों वहां मौजूद सिक्यूरिटी वालों की मदद से सदा के लिए जुदा हो गये. पांच फीट की लड़की फर्निचर शाप से बाहर निकली तो छे छे फिट ऊपर उछल रही थी. बल्कि लोगों ने देखा कि लड़की के पाँव आधे घंटे के लिए, जब तक वह वहाँ रही, जमीन पर पड़े ही नहीं.
लेकिन हम ठहरे निपट गाँव के आदमी. हमारे दादा जी जो अब नहीं रहे ने कभी कोई फिल्म नहीं देखी थी . वे अमिताभ बच्चन या रेखा को भी नहीं जानते थे. पिछले साल हम गाँव गये तो अपना डिजिटल कैमरा लेकर गये थे. लोगों की खूब तस्वीरे उतारी क्योंकि कोई खर्चा तो होना नहीं था. गाँव का फील देने के लिए कुछ लोगों से उन्हें अपने कन्धे पर आस पास बेवजह मिमिया रही बकरियो को उठा लेने को कहा. तस्वीरें अच्छी आयी. कुछ दिनों बाद फिर गाँव गये तो लोगों ने कहा कि हमारी भी एक तस्वीर बकरी के साथ निकालो. गाँव भर से बकरियाँ खोज खोज कर लायी गयी और हमने कई बकरियों और बच्चों की तस्वीरें निकाली. मेरी पाँच साल की बेटी गाँव से वापस मुम्बई के लिए चली तो खूब रोई. बोली एक बकरी साथ ले चलो. खैर बकरी तो नहीं ला पाये. पर ये यादे साथ आ गयी
तो कुल मिला कर कहने का मतलब ये था कि आज भी हमारे गाँव के बच्चो और बूढों के लिए एक बकरी अमिताभ बच्चन और रेखा से बढ़कर है क्योंकि उन्हें वे कन्धे पर बिठा सकते है, गोद में ले सकते है. बकरी उन्हें दूध भी देती है. आखिर गांधी जी ही तो इसी बकरी के दूध को हजार नियामत से बढाकर मानते थे . ये फिल्म स्टार तो उन्हें सुनहरे सपनों के सिवा कुछ दे नहीं पाते. चलिए चलते चलते वह शेर सुन लीजिए जो गांव की ही एक बकरी ने बड़ी मासूमियत के साथ मेरे कान में सुनाया था.

आप मेरा कत्ल करेंगे इसकी तो उम्मीद थी
पर उस दिन क्यों किया जिस दिन बकरीद थी.

17/7/07

एक मोटी की लव स्टोरी

हिरोइन परेशान थी. वह मोटी हो गयी थी और होती ही चली जा रही थी. पता नहीं पब्लिक मोटी हिरोइन को पसन्द करेगी या नहीं. पर पब्लिक तो बाद में. मालूम नहीं डायरेक्टर , प्रोड्यूशर भी पसन्द करें या नहीं. तभी सिग्नल पर हिरोइन को डायरेक्टर दिखा. डायरेक्टर भी काफी परेशान चल रहा था. फ्लाँप फिल्मो का उसका रिकार्ड कुछ ज्यादा ही लम्बा होता जा रहा था. कोई फायनेंसर उस पर निगाह डालने को तैयार न था और अंडर वर्ल्ड के पजामे के अन्दर तक अभी उसकी टाँग पहुंच नहीं पायी थी. ऐसे में हिरोइन की निगाह उस पर पड़ी तो उसकी आत्मा हरी हो गई. चूँकि अभी शाम नहीं ढली थी और रात का नशा पूरी तरह उतरा नहीं था इसलिए दोनों ने तय किया कि डिस्कसशन के लिए काँफी टेबल ज्यादा उपयुक्त रहेगा. दोनों ही बार को पार कर कैफे में घुसे . हिरोइन ने बैरे के आने से पहले अपनी फिक्र जाहिर की कि वह न चाहते हुए भी मोटी हुई जा रही है. डायरेक्टर बोला वह न चाहते हुए भी फ्लाँप पर फ्लाँप फिल्मे दिये जा रहा है. दोनों ने सोचा कुछ करना चाहिए और जब करना ही है तो क्यों न एक दूजे के लिए करे. डायरेक्टर बोला- मैं तुझे साईन करना चाहता हूँ..
हिरोइन मन ही मन खुश हुई पर उपर उपर बोली- मुझ मोटी को? डायरेक्टर बोला- हाँ . फिल्म का नाम है एक मोटी की लव स्टोरी. हिरोइन खुश हो गई तो डायरेक्टर ने उसकी खुशी कम करते हुए कहा- पर फायनेंस है नहीं इसलिए मैं कुछ दे नहीं पाउंगा. हिरोइन बोली- हम फ्रेंड है. तो फ्रेंड किस दिन काम आते हैं? मैं तुम्हारे बुरे वक्त में कुछ हेल्प करना चाहूँ तो ये तो मेरा हक बनता है. डायरेक्टर ने आँखों में शरारत भरते हुए पूछा- पूछोगी नहीं इस्टोरी क्या है.
हिरोइन बोली- आप भी मजाक करते हैं. पिछली बार इस्टोरी पूछी थी तो आपने मुझे फिल्म से ही आउट कर दिया था. डायरेक्टर खुश होते हुए बोला- गुड! तुम्हारा एप्रोच बिल्कुल प्रोफेशनल हो गया है.
वैसे मुझे भी मालूम नही कि कहानी क्या होगी. हो सकता है मैं किसी फाँरेन फिल्म से इस्टोरी लूंगा. काँफी की चुस्की लेते हुए डायरेक्टर ने बात आगे बढाई- इस्टोरी चूँकि है नहीं इसलिए तय है कि फिल्म में कुछ सीन नमकीन होंगे. कोई एतराज तो नहीं? हिरोइन बोली- सर पिछली बार एतराज किय था तो आपने मेरा रोल काटकर पाँच मिनिट का कर दिया था. मैं क्या पागल हूँ?( आखिरी वाक्य हिरोइन ने इस अन्दाज में कहा जैसे वह सचमुच पागल नहीं हो) हिरोइन ने सवाल क्या- हीरो कौन होगा? डायरेक्टर बोला- एक तो तू वैसे ही मोटी हो गई हो. दूसरे मेरे पास फायनेंस भी नहीं है. कोई हीरो राज़ी नहीं होगा. तो क्या बिना हीरो के फिल्म बनाओगे? मैं सोंचता हूँ अपने बडे बेटे को हीरो बना दूँ मगर बड़ा बेटा तो अभी बहुत छोटा है और बोतल से दूध पीता है. क्या तुम मुझे माँ का रोल दे रहे हो? डायरेक्टर बोला- नहीं वह तुम्हारे ब्वाय फ्रेंड का रोल करेगा. हम कम्प्यूटर की मदद से उसका डांस वगैरह दिखा देंगे. हिरोइन बोली- मगर बडी- बडी मल्टीस्टारर फिल्मे फ्लाँप हो रही है. एक मोटी हिरोइन और छोटे हीरो से फिल्म का क्या होगा? डायरेक्टर बोल- तुम चिंता मत करो. हमें प्लान करना पडेगा हिरोइन पूरे अटेंशन के साथ आगे झुक गाई तो डायरेक्टर बोली- फिल्म रीलीज होने से पहले तुम कानून का दरवाजा खटखटाओगी कि इस फिल्म मैं तुम जिंतनी मोटी नहीं हो उससे ज्यादा दिखाई गई हो. इतनी मोटी देखकर तुम्हारे फैन तुमसे नाराज हो जायेगे. वैसे ये अलग बात है कि तुम्हें ज्यादा मोटी देख कर तुम्हारे फैन और खुश होंगे. खबर की भूखी प्यासी मिडिया इस खबर लो ले उडेगी. हो सके और थियेटर मालिक राजी हो तो एक- आध जगह हम तुम्हारे फैन से थियेटर पर तोड फोड भी करा देंगे. फिर देखना कैसे होती है हमारी पिक्चर सुपर हिट! काँफी खत्म हो चुकी थी इसलिए दोनो मुस्कुराते हुए कैफे से बाहर निकल पडे हास्य व्यंग्य, फिल्म.

15/7/07

दोस्तो

ठंडे बस्ते से निकाल कर एक लघु कथा लाया हूँ . एक जमाने में लघु कथा का बड़ा हल्ला था. और जिधर देखिए उधर लघु पत्रिकायें निकला करती थी. बन्दे ने भी सम्वाद नाम से एक हिन्दी लघु पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन कुछ साल तक बिहार के सीतामढी जिले से किया था. कुछ लोगों का कहना है कि जो कहानी लिखने का धीरज नहीं रखते वे लघुकथा लिख कर काम चलाते हैं. अहर इस हिसाब से सोचे तो जिसमे महाकाव्य लिखने की योग्यता या धीरज नहीं है वे छोटी छोटी कविताये लिख कर कवि बन जाते है. खैर प्रस्तुत है एक लघुकथा.

भाई-भाई

बारिश हो रही थी और मोहन अपने कमरे में बैठा पढ़ाई कर रहा था. तभी अचानक कुछ लिखने की जरूरत आ पडी . परंतु कलम के लिए हाथ बढाया तो कलम का कुछ अता- पता नहीं. मन मसोस कर बड़बड़ाते हुए उठना पड़ा.’जरूर यह अशोक की शरारत होगी . जब भी पाता है, उठा लेता है.. फिर कमबख्त लिखता भी तो इतना दबाकर है कि बिना नींब टूटे कोई चारा ही नहीं.

बाहर निकला तो देखा वह अंगूठे पर कलम से रोशनाई लगा-लगा कर कागज पर ठप्पा लगाने में मशगूल है. उसे बहुत क्रोध आया. अब तो यह् कलम को कलम नहीं खिलौना समझने लगा है! उसने धीमे से उसके गाल पर एक चपत लगा दी. फिर क्या था. वह रोता हुआ पिताजी के पास पहुंच गया. और शिकायत करने लगा. माँ भी बिगड़ पड़ी. ‘अरे देख तो जरा. बच्चे ने जरा छू ही दिया तो क्या पहाड़ टूट पड़ा जो मार बैठा.. बुलाहट हुई तो जाकर उसने सारी बातें सीधी- सच्ची सुना दी. वे कान खींचते हुए डांटने लगे, ‘ जाओ अभागे , कुत्ते की तरह अपने में ही लड़ कर मर जाओगे . जब भाई -भाई मिल कर नहीं रह सकते तो फिर क्या कर पाओगे.. दूर हो जाओ मेरी नज़रों से.

वह बाहर निकलने लगा तो पुनः बोले , ‘सुनो बारिश बन्द हो चुकी है, मैं एक काम से जा रहा हूँ , तुम शाम को बाजार से सब्जी ले आना.’

माँ बोली , ‘पहले से तो नहीं जाना था. क्या कोई.......’

हाँ जरा मुक़दमे के सम्बन्ध में एक नये वकील से मिलने जा रहा हूँ अब जाकर पता चलेगा राकेश को कि मैंने भी कोई भेड़ बकरी का दूध नहीं पिया है.

बाजार जाते हुए उसके पाँव मन- मन भर के हो रहे थे क्योंकि राकेश उसके छोटे चाचा जी का नाम है और जमीन का कोई मुकदमा है, जिसके लिए पिताजी महीनों से घर पर वकीलों का अड्डा जमा कर गिटपिट करते रहते है.

12/7/07

प्यार के नाम

वैलेंटाईन डॆ तो पता है न आपको. पहले मुझे भी कहाँ मालूम था. बरसों पहले इसके बारे में बी बी सी रेडियो पर सुना था तब जाकर इसके बारे में जानकारी मिली थी. उस वक्त अपने देश में इसे न तो इस तरह धूम धाम से मनाने का प्रचलन था और न ही इसके घोर विरोध का. आज ये सब जोरो पर है. कभी कभी लगता है ट्रेन कई स्टेशन पार कर चुकी है और उसे पकड़ना बिल्कुल मुश्किल है. एक कविता प्रस्तुत है जो कैसे लिखी गई ये तो एक रहस्य है. पर कभी न कभी बताउंगा जरूर. ये वादा है आप सबसे. अगर आप् अपनी प्रतिक्रिया मुझसे बतायेंगे मुझे बुरा बिल्कुल भी नहीं लगेगा.


कौन हो तुम् ?


जो मेरे दिलो- दिमाग पर


इस तरह छा गई हो कौन हो


तुम जो इस तरह चुपके से


मेरी जिन्दगी में आ गई हो


कभी दूर लगती हो, बहुत ............................ दूर


कभी पास लगती हो, एकदम पास


पल में होता हूँ खुश पल में उदास्


हरी घास और हरी हो गई है


और नीला आसमान


और भी नीला हो गया है


फिर भी कुछ है जो खो गया है


कौन हो तुम


जो मेरी नींद् उड़ाती हो


तुम जो मेरा चैन चुराती हो


तुम जो मेरी धड़कन में समा गई हो


तुम जो इस तरह् चुपके से


मेरी जिन्दगी में आ गई हो


कौन हो?


कौन हो तुम?

10/7/07

ख्वाब हो या हो कोई हकीकत

768749892_1ab7456d9a_mकुछ लोग इतने सुन्दर होते हैं कि अगर वे सामने हों तो उन्हें देखने में डर लगता है कि कही उन्हें नजर न लग जाये. पिछले दिनों एक ऐसी ही शख्स से मुलाकात हुई, बात हुई, पर अब शेर वही याद आ रहा है तलत अजीज का गाया हुआ- न जी भर के देखा न कुछ बात की, बड़ी आरजू थी मुलाकात की. इस तस्वीर में आप ट्विंकल का दीदार कर रहे हैं और शायद मैं भी वही कर रहा हूँ


. ट्विंकल मुम्बई में रह रही है. अति मधुर आवाज की मल्लिका है और रियाज गजब का. प्रस्तुतिकरण कमाल का. सुने तो सुनते रह जायें और देखें तो देखते रह जायें. चेहरे पे मुस्कुराहट हमेशा अठखेलियाँ करती रहती है एक ख्वाब सा बुनती है. सा रे गा मा में अनेक बार लोगों का दिल जीत चुकी है और बह्त जल्द हिमेश रेशमिया के एक एलबम में भी अवतरित हो रही है. .सारे गामा में कैमरा मैन ट्विंकल की खूबसूरती को नजर अन्दाज नहीं कर पाते थे और उसके खूबसूरत होंठ और कानो की बालियाँ टेलिविजन के परदे पर आ कर देखने वालों को सोचने पर मजबूर कर देती थी कि ये लड़की सिंगिंग प्रतियोगिता में तो आयी है पर ऐसा लग रहा है जैसे वे सौन्दर्य प्रतियोगिता का आनन्द उठा रहे .जरा गौर से देखिये घड़ी भर

5/7/07

रेलवे रिजर्वेशन

सुबह सुबह पिताजी ने सोते से जगाया
और एक जोरदार लेक्चर सुनाया.
बोले तुम से तो कुछ भी नहीं हो पाता है
शर्मा जी के लड़के को देखो
बन्दे ने क्या कमाल करके दिखाया है.
बिना दलाल से मिले रेलवे रिज़र्वेशन काउंटर से
गर्मी की छुट्टी में गाँव जाने का कनफर्म टिकट ले कर आया है
अरे जरा भी शर्म है तो होश में आओ
और कहीं जाकर चुल्लू भर पानी में डूब जाओ
पिताजी का रूख देखकर मन ही घबरा गया
और सच बताउँ तीन बार चक्कर भी आ गया
तो पिताजी बोले तू तो ऐसे घबरा रहा है
जैसे रिज़र्वेशन काउंटर कोई लन्दन में है
अरे बेटे स्थिति तनाव पूर्ण किंतु नियंत्रण में है
तो अगली सुबह नहा धोकर मैंने जैसे ही
रिज़र्वेशन सेंटर जाने के लिए कदम बढ़ाया
माताजी का कोमल स्वर आया
बेटे मैं तुम्हें ऐसे ही नहीं जाने दूंगी
तू आज पहली बार टिकट लेने जा रहा है
मैं माता दुर्गे का व्रत रखूंगी
दादी माँ ने तो कमाल ही कर दिया
पुरानी सन्दूक से एक तावीज निकाल कर लायी
और मेरे बाँह में बान्ध दिया
भाभी बोली – दिन का खाना साथ रख लो
भूख लगेगी तो काम आयेगा
रात का खाना छोटा भाई तुझे दे आएगा
तो बड़े भाई बोले बिस्तर भी साथ रख लो
क्या पता काम हो आये टिकट ही लाने जा रहे हो
कहीं रात दो रात रुकना हो जाये
बड़ी बहन बोली- अब जब जा ही रहे हो रिज़र्वेशन कराने
क्या होगा ये तो भगवान ही जाने
छोटी बहन बोली- भैया मेरे साथ इंसाफ करना
मेरा कुछ कहा सुना हो तो माफ करना
खैर साहब किसी तरह घर वालों से पीछा छुरा कर बाहर आया
तो सामने एक बीमा का एजेंट नजर आया हमें देखते ही मुस्कुराया
बोला- रिज़र्वेशन कराने जा रहे हो
बहुत बड़ा रिस्क उठा रहे हो
पहले अपना बीमा कराओ
फिर टिकट लेने के लिए जाओ
पड़ोसी ने सुना तो बोला_ एक जरूरी काम कर लिया है
अरे अपनी वसीयत लिख कर रख दिया है.
खैर साहब रिज़र्वेशन सेंटर पहुँचे तो अजीब नजारा था
दृश्य बड्रा सुन्दर बड़ा प्यारा था क़तारों में कतार थी
भीड़ एक दूसरे के सिर पर सवार थी;
किसी की ज़बान पर जीसस किसी के मुँह पर अल्लाह
तो किसी के मन में हनुमान था
पूरा रिज़र्वेशन सेंटर अपने आप में एक छोटा सा हिन्दुस्तान था
लोग लेटे थे बैठे थे खड़े थे
कुछ तो बिस्तर बिछाये पड़े थे
तो हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ
मैं भी एक कतार में खड़ा हुआ
आगे खड़ा बूढ़ा अखबार पढ़ रहा था
बड़ा निश्चिंत लग रहा था
मैंने कहा क्या पेपर आज का है
वो बोला जी नहीं पिछले इतवार का है
मैं बोला क्यू भाया
बोला- क्या करुँ उसके बाद से इधर कोई बेचने ही नहीं आया
मैं ने कहा – आज मेरी मां ने माता दुर्गे का व्रत रखा है
मैं टिकट लेकर जाउंगा तो प्रसाद खिलायेगी
बगल में खड़ा बूढा बोला- बेचारी दिन भर का उपवास करके
मुफ्त में पछतायेगी
तुम्हे नहीं मालूम इस टिकट की कतार ने
मेरी जिन्दगी का कितना बड़ा हिस्सा लिया है
अरे मैंने तो अपनी लड़की का रिश्ता भी
अभी अभी इसी कतार में तय किया है
मैंने कहा कौन है कौन है?
मतलब आपका होने वाला रिश्तेदार बोला खुद नहीं समझ सकते
अरे और कौन ये काउंटर पर बैठा सरदार
मैं ने कहा इस बूढ़े खूसट से करेंगे अपनी लड़की की शादी
तब तो हो गई उसकी पूरी बरबादी
बोला बरबादी किस की है ये तो वक्त ही बतलायेगा
लेकिन हर साल गर्मी में गाँव जाने का टिकट तो आसानी से मिल जायेगा
तो मित्रों इसी तरह सुबह का सूरज शाम को अस्त हो रहा था
और मैं भी ख्डा खड़ा बिल्कुल पस्त हो रहा था.
बजने को थे रात के आठ
और आगे अभी भी आगे आदमी खड़े थे साठ
तभी भगदड़ सी मची शोर में मेरा स्वर मन्द हो गया
और देखते ही देखते काउंटर भी बन्द हो गया
तो खाली हाथ घर आये मुँह लटकाये
अब कैसे बतायें कैसे बताय़ें कि टिकट नहीं मिला है
कि टिकट मिलना एक भरम है एक भुलावा है
एक धोखा है एक छलावा है
सो कुछ कह नहीं पाया तो मुँह लटका कर ख़डा हो गया
तो बड़ा भाई बोला टिकट तो मिला नहीं क्या फायदा मुंह लटकाने से ?
बन्द करो इस नाटक को चेहरे पे बारह बज रहे हैं
जैसे चेहरा नहीं अनाथालय का फाटक हो.
मगर इससे पहले कि कुछ बताता
अपनी सफाई मैं कुछ सुनाता
बड़ी बहन आ कर पीठ सह लाने लगी
छोटी ढाढ़स दिलाने लगी
बोली ये भी अच्छा है कि टिकट की किल्लत है.
आसानी से नहीं मिलती है.
पर आज के जमाने में क्या पता
कब कहाँ कौन सी ट्रेन में बम का धमाका हो जाये
और हम गाँव पहुंचने के बजाय कहीं और पहुंच जायें
तो मित्रों कविता समाप्त हुई
पर आप तालिय़ाँ बजाने का कष्ट मत कीजिए
और कविता जरा सी भी पसन्द आई हो
Pतो अगली गर्मी की छुट्टी में गाँव जाने की
पाँच कनफर्म टिकट दिलवा दीजिए.

कुछ तो वजह चाहिए

//static.flickr.com/1407/774310303_9313b310d8_sबात शुरू करने के लिए कुछ तो वजह चाहिए. यों बात बन्द करने के लिए भी वजह चाहिए. पर बात तो बन्द तब हो जब पहले शुरू हो. तो वजह है एक नज्म और इसे लिखने वाले हैं-ओम प्रकाश आर्य. ये वर्तमान में राजस्थान के अलवर जिले में एक गैर सरकारी संस्थान में कार्यरत है जिसे एन जी ओ कहा जाये तो ज्यादा लोग समझ पाते है और गैर सरकारी संस्थान कहा जाये तो पूछते हैं ये क्या होता है. ओम अति सम्वेदनशील है. अति कोई आतंकित करने के इरादे से नहीं कह रहा हूँ. अति का अर्थ बस इतना भर है कि जितनी सम्वेदनशीलता की जरूरत एक इंसान में होती है उतनी. क्योंकि आजकल सम्वेदनशीलता एक एपेंडिक्स की तरह है. बेकार की चीज. खैर ! कविताय़ें कहें या कहें कि साहित्य से हद दर्जे का अपनापा है. पिछले दिनों मुझे उसने मेल से एक नज्म भेजी तो मुझे लगा आप भी उस नज्म से रू ब रू हों . दरअसल हम दोनों दुनिया के हिसाब से आपस में बहुत ज्यादा बातें नहीं करते पर हम दोनों ही एक दूसरे को बहुत समझते हैं. बुद्ध और महावीर के बारे में कहा जाता है कि वे एक बार मिले. पर दोनों की कुछ बात चीत नहीं हुई. बाद में शिष्यों ने पूछा कि कुछ बात क्यों नहीं की. दोनो महापुरूषों ने अपने अपने शिष्यों से कहा - जो मुझे पता है वो सब उन्हे पता है और जो उन्हे पता है वो सब मुझे पता है. है न गजब की बात. यहाँ एक शेर याद आता है- नजर ने नजर से मुलाकात कर ली रहे दोनों खामोश और बात कर ली इसे बडी प्यारी आवाज के मालिक प्यारे गजल गायक भूपिन्दर और मिताली सिह ने खूबसूरत अन्दाज में गाया है. कुछ ऐसा ही होता है अकसर चलिए वह नज्म मुलाहिजा कीजिए-और पसन्द आये या आप कुछ कहना चाहें तो सीधे उसे भी मेल कर सकते हैं बस यहाँ क्लिक कीजिए नज्म -ओम प्रकाश आर्य पतझर में जो पत्ते बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से, वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं उन सूखे पत्तों की रूहें उसी आशियाने की दीवारों पे सीलन की तरह बहती रहती है किसी भी मौसम में ये दीवारें सूखती नहीं ये नम बनी रहती है मौसम रिश्तों की रूहों को सुखा नहीं सकते. 43 Things Tags: हाँ ये बताना रह ही गया कि ये मेरे छोटे भाई हैं.

3/7/07

इंटर नेट को नमस्कार

राजनन्दन सिंह यो कहे तो एक नाम भर है पर नाम एक इंसान का है. हम और इस इसान को ज्यादा दिनों से जानने वाले अधिकतर लोग इन्हे “राजू” के नाम से जानते है. जो इन्हे ज्यादा नहीं जानते हैं वे इन्हे राजनन्दन सिह के नाम से जानते है. शाहरूख खान की फिल्म “ राजू बन गया जेंटल मैंन “ याद आ जाती है. पर ये भाई साहब शुरू से ही जेंटल मैन् थे और वाकई के जेंटल मैन थे.फिल्मी जेंटल मैन् नहीं. हमारे गाँव में सीतामढी में इनकी ननिहाल थी. और ये ज्यादातर अपने नाना के घर रहाते थे और पढाई करते थे. हम लोग साथ साथ नदी में पेड़ से छलांग लगाते थे. नहाते थे. तैरते थे. नाव से स्कूल जाया करते थे. और जाने क्या क्या किया करते थे. दिल्ली में रहने के दौरान मुझे एक निजी चैनल के लिए कविता पर आधारित एक कार्यक्रम के संचालन का मौका मिला तो मैने इन्हे जबरदस्ती कवि बनाया. क्योंकि अच्छे कवियों को लाने की जिम्मेदारी भी मेरी थी.इन्होने तीन चार एपिसोड में शिरकत की. फिर मैं मुम्बई आ गया , तो सम्पर्क टूट सा गया. पिछले दिनो अचानक मेल वाँक्स में एक मेल दिखा और खोलने पर पाया कि ये वही राजू भाई है और अब चीन के एक शहर में एक कम्पनी में फैब्रिक क्वालिटी कंट्रोलर के रूप में कार्यरत है. उनका मेल पठ कर मैने इंटर नेट को नमस्कार किया जिंसने दूरियाँ मिटा दी है. उन्होने अनुभूति साईट पर मेरी रचनाये देखी और प्रसन्न हुए और फिर होमपेज सर्च किया और मेल मेरे मेल बाँक्स में. तो साहब राजू भाई ने इसी इंटर नेट की महिमा और महत्व पर एक गजलनुमा सा कुछ रचा और मुझे कहा कि एक तुकबन्दी सी की है. वो चीज है क्या ये आप देखिए और मुझे बताईए. जी चाहे तो उन्हें भी बताईए. उनका पता है. बस यहाँ क्लिक कीजिए गज़ल नही अब ओठ हिलते हैं नही आवज होती है उंगुलियां बातें करती हैं दिल कि बात होती है महीनों देखा करते थे जहाँ हम डाकिये की राह वहाँ अब डाक लहरों से पल-पल की बात होती है हम कितनी दूर बैठे हैं नहीं मतलब इन बातों का हवा में बोलते है हम हवा में बात होती है कबूत्तर से कंप्यूटर तक पहुँचा ये सिलसिला कैसे कहाँ किसको फूर्सत है सोंचे कैसे बात होती है छुप-छुप के कागज पर लिखना किताबों में चिट्ठी मिलना ये कब की बात है नन्दन और ये क्या बात होती है.