8/8/10

चकुआडीह

बडी लाइन से बावन किलोमीटर हटके
छोटी लाइन के छोटे रेलवे स्टेशन
चकुआ डीह के
गार्ड बाबू बडे ही दु:खी रहते है
दु:खी तो रहते है स्टेशन मास्टर तक


आइंस्टीन से कम कोशिश नही करते
यह समझने की कि
क्यो बना यहाँ स्टेशन
जब दिना भर मे एक ही ट्रेन गुजरनी है
और वो भी रुकने की नही
चली जाती है ठेंगा दिखाती हुई
धरधराती हुई

क्या यह उनका समय है
जो उन्हे ही ठेंगा दिखा रही है
या उनका भाग्य
जो धरधराता हुआ उनसे दूर निकला जा रहा है

छोटे से स्टेशन पर
कुछ नही है ऐसा भी नही
सन्नाटा है गजब का
जो दिनभर मे एक बार टुट जाता है

स्टेशन मास्टर सोचते है
इससे तो अच्छा था किसी टुटे फुटे
स्कूल के मास्टर होते
जहाँ आकर
कुछ बच्चे रोज रुकते तो सही
किताबे चढती
पोथियाँ उतरती
कुछ होता सा लगता
ये सन्नाटा विवश तो नही होता
दिन भर मे फकत एक बार टुटने के लिए !