तकते हुए न कभी थकते है रूप बूढे रूप देख झुर्रियों पे रंग चढ जाता है,
तन किसमिस पर मन अंगूर बन पल में ही सातों आसमान चढ जाता है,
बूढो का न दोष कोई इसमे है रंचमात्र रूप देखके जो रूप पर मर जाता है,
सच तो ये है कि रूप सामने दिखाई दे तो मरे मुर्दे का हर्टबीट बढ जाता है.
9 टिप्पणियां:
"तन किसमिस पर मन अंगूर बन पल में ही सातों आसमान चढ जाता है,"
कमाल है बसंत जी आप हम से कभी मिले ही नहीं और फिर भी हमारे बारे में कितना कुछ जानते हैं.अंतर्यामी हैं क्या महाराज?
नीरज
बसंत जी
मूर्खता के दोहे पसंद करने का शुक्रिया. मजे की बात है की हर समझदार को मूर्खता के दोहे पसंद आए हैं. आप का कमेन्ट बहुत पसंद आया.
स्नेह बनाये रखें.
नीरज
basant ji apne likhna kyon chor diya...apke blog per 1 tippari maine inext newspaper me 21 september ko likhi...dekhne k liye please URL click kijiye
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बसंतजी हम तो सिर्फ़ प्यार करते हैं. आप प्यार को भी एक ध्यान कह सकते हैं बशर्ते वो भी इस ध्यान को समझ जाए.
बूढों का भी दिल होता है. आप भी तकिये और हम बूढों को भी तकने दीजिये. रूप की तारीफ़ न की जाए तो यह उस का अपमान है. अच्छी रचना है. वधाई.
बसंत भाई
अगर आप उन नामों का खुलासा कर सकें तो मुझे एक खोज करने में मदद मिलेगी कि मुझे मंच पर आने न देने के क्या क्या और संभावित कारण हैं। आपका एहसान होगा मुझ पर। हो सकता है जिन कवियों से मैंने निवेदन किये थे वे ही मुझे न बुलाने की जुगत भिड़ाते हों क्योंकि भेद खुल जायेगा। आप सहयोग करेंगे तो आपका आभार होगा।
बहुत खूब।
ग़ज़ल
लो अब सारी कहानी सामने है
तुम्हारी ही जु़बानी, सामने है
तुम्हारे अश्व खुद निकले हैं टट्टू
अगरचे राजधानी सामने है
गिराए तख़्त, उछले ताज फिर भी
वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है
मेरी उरियानियां भी कम पड़ेंगीं
बशर इक ख़ानदानी सामने है
तेरे माथे पे फिर बलवों के टीके-
बुज़ुर्गों की निशानी सामने है !
अभी जम्हूरियत की उम्र क्या है
समूची ज़िन्दगानी सामने है
-संजय ग्रोवर
(‘द सण्डे पोस्ट’ में प्रकाशित)
वाह-वाह, मजा आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
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