एक अरसा बीत गया आप लोगों से मिले हुए. ये कहना भी कुछ सही नहीं है. बल्कि कहना चाहिए कि एक अरसा हो गया आप लोगों को मुझ से मिले हुए. आप लोगों से तो मैं मिलता ही रहता हूँ. एक मुक्तक से अभी अभी मुक्त हुआ हूँ तो इस बार वही आपके हवाले--
दिल को दिल तक जाने में एक जमाना लगता है
उन आँखों केअंदर मुझको एक मयखाना लगता है
कोई पागल , कोई मजनू , कोई दीवाना कहता है
प्रेम गली से जो गुजरो तो ये जुरमाना लगता है.
8 टिप्पणियां:
वाह क्या बात कह दी है आपने जैसे मानो मेरे दिल की बात कह दी हो .......पर चौथी लाइन मुझे समझ मे नही आयी कृपया बताने की जहमत करेगे क्या?
यह मात्र गुजारिश है
दिल से दिल तक जाने में एक जमाना लगता है।
बहुत गहरी बात कही है आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kyaa baat kah di aapne .....hum ashiko ka to yahi inam hai bhai
बसंतजी पहली बार आपका ब्लोग देखा है पहली नज़र मे ही इसने जादू कर दिया है बहुत बडिया मुक्तक है बधाई
Bahut Khoob Sir Jee...
दिल से होकर दिल तलक इक रास्ता जाता तो है
और गर कुछ है नहीं ये इश्क इक धोखा तो है
यह बाधा शब्द वेरिफ़िकेश्न ह्टाएं
श्याम
वाह.. बसंत जी वाह..
सीधे-सादे शब्दों में बढ़िया मुक्तक।
बधाई।
शब्द-पुष्टीकरण हटा दे।
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