(फिर एक पुरानी डायरी से )
बडे भैया
लौट आओ अब
अपना भी गांव
कोई बुरा नही
बड्की भाभी के
पांवो की रुनझुन
बडे उदास है
तुम्हारी बिन
तुम्हे ही ढुंढते है
हर पल
हर दिन !
गांवभर के बच्चे
जवार भर की गाये
आंचल मे सहेजे
वह ठंडी हवाये
कर रही तुम्हारी प्रतीक्षा
लौट आओ अब !
हल वे अब भी
चडमडाते है
बैलो के श्वास तक
है बेआवाज
उनकी घंटियो का स्वर
पिछवारे के कटहल तक
जा जाकर लौट आता है !
और हाँ
मटर के खेत मे
कल जब पछिया की सिटकरी
जोर से गूंजी
तो दद्दू चिहूंक उठे
क्या बडका लौट आया है
लौट आओ भैया
अब लौट आओ तुम!
परसो ही गाडी से
छुट्की विदा हो जायेगी
छोड कर
अपने हसरतो के गांव को
हम उसे
पहुंचाने जायेंगे टिसन तक
तुम भी आना भैया
जरुर आना !
पराये महल लाख लुभाये
अपनी झोपडी तो
अपनी ही होती है !
4 टिप्पणियां:
ज़रूर लौट के आ जाएँगे भैया इतना बढ़िया खत जो उनके पास पहुँचा है..बढ़िया अभिव्यक्ति..आभार!!!
भावुक करती अभिव्यक्ति!!
अपना फोन न. ईमेल करो!
बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
बहुत बढ़िया...
भावुक...खत...
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