7/8/07

दुनिया के पुराने सात आश्चर्य

दुनिया के सात आश्चर्यों की बड़ी चर्चा रही पिछले दिनों. पर मेरे दोस्त रवीन्द्र प्रभात ने जिन नये सात आश्चर्यों की चर्चा की तो मुझे लगा ये तो आठवाँ आश्चर्य है कि दुनिया जिन चीजों को सात आश्चर्यों में शुमार करती है वे दरअसल एक बचकानेपन की बात है. लिजिए उनकी जुबान से ही सुनिये-
प्रिय बसंत जी,
आज मैं जीवन के जिन सात आश्चर्यों की चर्चा करने जा रहा हूं उन्हीं सात आश्चर्यों में से
एक है हँसना और हँसने का हीं उत्कृष्ट रूप है ठहाका. यही दुआ है कि ठहाका के मध्यम
से मिलने- मिलाने का यह माध्यम बना रहे..

आपने मेरे बारे में जो लिखा है, उतना सौभाग्यशाली मैं हूं नहीं, यह तो आपकी महानता है जनाब, जो इतना महसूस किया...... पिछले दिनों ताज को दुनिया के सात अजूबों में मार कराने के लिए भारत के लोगों ने काफ़ी मशक्कत की. अच्छी बात है, पर यदि हम अपने भीतर की यात्रा करते हुए जीवन के सात अजूबों का एहसास कर सकें , तो इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन बहुत हीं ख़ूबसूरत और सारगर्भित हो जाएगा . अब आप कहेंगे कि जीवन के सात अजूबे कौन से हैं? तो मेरा जवाब यही होगा कि वह है-देखना,सुनना, स्पर्श करना, महसूस करना,हँसना,रोना और प्यार करना.
चौंक गये क्या जनाब ? चौंकिए मत, यही सच है. इस दुनिया को देख पाना एक सुखद आश्चर्य है, जिसने दुनिया को विविधता का रंग दिया, उसी ने हमें देखने की शक्ति दी .हम हिमालय की उँचाई को देख सकते हैं, ताजमहल की खूबसूरती को निहार सकते हैं, वहीं सड़क पर पड़े कचरे को भी देखते हैं. हमारे पास अंदर झाँक ने की शक्ति भी है, जिससे हमें अपने भीतर मौजूद असीमित संभावना दिखती हैं,जो दुनिया को ख़ूबसूरत बना सके. उसी प्रकार हमारे पास सुनने की अद्भुत क्षमता है. हम बादलों के अट्टहास सुन सकते हैं, तो चिड़ियों के कलरव भी, हम दुनिया की भी सुनते हैं और अपने मन की आवाज़ को भी. इसलिए सुनना जीवन का दूसरा सबसे बड़ा आश्चर्य है.
मनुष्य का जीवन बड़ा क़ीमती है, पर सुनना नही आया तो जीवन का कोई उपयोग नहीं.राह पर चलते हुए हर राहगीर को सड़क पर गिरे सिक्के का स्वर अचानक अचम्भित करता है, किंतु वहीं राह के किनारे किसी घायल की व्यथा के मौन स्वर सुनने का भान शायद किसी- किसी को प्राप्त है. सुनना एक ऐसी पारस मनी है, जो अंदर से बाहर तक मनुष्य को स्वर्णयुक्त बना देता है. छूना अर्थात स्पर्श करना एक ऐसी शक्ति है, जो व्यक्ति के भीतर उर्जा का संचरण करती है. यदि कोई दुखी है, पीड़ित है और उसके कंधे पर हाथ रख दिया जाए, तो निश्चित रूप से उसकी पीड़ा कम हो जाएगी. रोते हुए बच्चे को अचानक माँ द्वारा गोद उठा लेना और संस्पर्श का एहसास पाकर बच्चे का चुप हो जाना यह दर्शाता है कि स्पर्श हमारा भावनात्मक बल है.
इसी प्रकार महसूस करना अर्थात भावनात्मक होना मनुष्य की आंतरिक जीवन दृष्टि है, जहाँ आकार लेता है जीवन मूल्यों का सह अस्तित्व, क्योंकि कहा गया है कि जिससे हमारी भावना जुड़ जाती हैं, उसकी प्रशंसा करने अथवा प्रशंसा सुनने में भावनात्मक संतुष्टि मिलती है. यही है जीवन का चौथा आश्चर्य. उसी प्रकार हँसना प्रकृति के द्वारा प्रदत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. हँसना एक चमत्कार है, आश्चर्य है, क्योंकि हँसने से जहाँ ज़िंदगी के स्वरूप और उद्देश्य का भाव प्रकट होता वहीं नीरसता , उदासीनता और दुख का भाव नष्ट करते हुए आनन्द्परक वातावरण का निर्माण करता है. यह भाव केवल मनुष्य में ही होता है. उसी प्रकार जब आदमी रोता है तब सबसे ज़्यादा सच्चा होता है, उजला होता है. रोना
कायरता नहीं है,
खूद का सामना करने की ताक़त की निशानी है. राष्ट्र कवि दिनकर ने कहा है, कि जिसका
पुण्य प्रबल होता है वही अपने आँसू से धूलता है. इसलिए रोना छठा सबसे बड़ा आश्चर्य
है. कहा गया है, कि लगाव, दोस्ती,इश्क़,ममत्व और भक्ति हमारी पाँच उंगलियाँ है,. जो
जीवन की मुट्ठी को मजबूत करती है. किसी कठिनाई और समाधान के बीच उतनी हीं
दूरी है, जितनी दूरी हमारे घूटनों और फ़र्श में है, जो घुटने मोड़कर ईश्वर के सामने झुकता
है, वह हर मुश्किल का सामना करने की शक्ति पा लेता है. यही है प्यार, जो जीवन का
सातवाँ आश्चर्य है. शायद हमारी बातों से सहमत हो गये होंगे आप?

रवीन्द्र जी की इस सोंच को मैं नूतन कपूर के इस शेर से खत्म करता हूँ आँखों से तो केवल उसका आना जाना था उसका दिल के भीतर के भी भीतर कही ठिकाना था.

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सही है. असल अजूबे तो यही हैं.