वो नन्हीं चिड़िया भी अजीब थी
हमारे छोटे से घर के
छोटे से बरामदे के
एक कोने में बना रही थी
अपना
छोटा सा घोंसला
बरसात शुरू होने के
बिल्कुल पहले
हम हैरान होते
बिना किसी कैलेंडर के
चिड़िया को कैसे
लग जाती है खबर
मानसून के आमद की ?
सुबह की पहली किरण फूटने से
शाम ढ़ल जाने तक
चोंच में दबा दबा कर लाती थी
सूखी घास के अनगिन तिनके
जाने कहाँ कहाँ से
और कितनी कितनी दूर से
पत्नी सफाई करते
बड़ा ध्यान रखती थी उस घोंसले का
और तारीफ करती थकती न थी
चिड़िया के हौसले का
कहती थी –कैसे लगी रहती है
दिन भर अपने काम में
शायद पत्नी देखती थी चिड़िया में
अपना ही अक्श
पड़ोसी कहते थे रोज
घोसले को हटाने की बाबत
कहते थे चिड़िया है तो
चिड़िया की तरह रहे
बाहर या किसी पेड़ पर बनाये
अपना घोंसला
ये क्या बात हुई
आज बरामदे में है
कल ड्राइंग रूम में आ जायेगी
आखिर
किसी भी चीज की हद होती है
उन्हीं दिनों हम ढूँढ़ रहे थे
एक नया घर
हमारी हिम्मत नहीं होती थी
कि कुछ भी ऐसा करें
कुछ ही दिनों बाद
हमने अपने
नये घर में प्रवेश किया
और अलविदा कहना पडा उस चिड़िया को
परंतु आज भी
इंतजार है उस चिड़िया का
जिसने नया घर ढ़ूँढ़ने में
हमारी बेहद मदद की
और शायद दुआयें भी.
9 टिप्पणियां:
बहुत ही प्यारा इंतजार है......
अच्छी भावाभिव्यक्ति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बेहतरीन भाव संयोजन के लिये साधुवाद स्वीकारें....
bahut hi man-bhaavan aur samvedansheel rachanaa hai
आपका इंतजार रंग लाए, हमारी यही दुआ है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही प्यारा...अच्छी भावाभिव्यक्ति.
सुंदर अभिव्यक्ति
सुंदर रचना।
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