30/8/07

आज ना छोड़ेंगे

आज ना छोड़ेंगे



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बाये से है. राकेश जोशी, देवमणि पांडेय ,यूनूस खान्, देवमणि पांडेय, महेश दूबे, महेन्द्र मोदी, बसंत आर्य,वीनू महेन्द्र और बैठी है कांचनप्रकाश और कुसुम जोशी.


मौका होली का था.और साल 2007. होलीके लिए विशेष प्रोग्राम की कल्पना की थी विविध भारती मुम्बई के केंन्द्र् निदेशकमहेन्द्र मोदी जी ने और जोश था राकेश जोशी जी का. जब होली में सब यही कहते हैं किआज ना छोड़ेंगे तो भला रेडियो वाले कवियों को कैसे छोड़ सकते थे. रिकार्डिंग के लिएबुलाया गया मुम्बई के ही छै कवियों को. कवि गण थे बहुत भारी इसीलिए सोच समझ कर दीगई थी कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी . और वो दी गई देवमणि पांडेय को. कवि गणथे- सर्दी खाँसी न मलेरिया हुआ से प्रसिद्धि पाने वाले वीनू महेन्द्र, बनारस केलोटे की तरह मुम्बई में मौजूद सभी कवियों में मोटे महेश दूबे साहब. जिन्हे उनकेगोरेगाँव् फर्निचर से उठवाया गया था, जहाँ दिन भर बैठ कर वे भगवान का मन्दिर बेचाकरते हैं. जब ग्राहक दुकान में नहीं होते उस वक्त वे कविताये लिखते रहते हैं अगरकविताय़ें भी नहीं लिखना हो पाता तो वे बाल ठाकरें जी के हिन्दी अख़बार दोपहर कासामनाके पाठकों के सवालों से रू ब रू होते हैं और डाईरेक्ट ऐक्शनलेते है जो किउनके कॉलम का नाम है. इस बात से उनकी प्रसिद्धि और बढी है कि वे अब बाल ठाकरे केबाद दूसरे शख्स हैं जो डाएरेक्ट ऐकशन लेते है.. उन्हें ज्यादा कमाई कविता से होतीहै या दुकान से ये मुम्बई के सारे हास्य कवियों की उत्सुकता का विषय है. अम्बरनाथसे दौड़े हुए आये थे दिनेश बाबरा जिसके बारे में मुम्बई के कवियों का ये मानना है किपाँच फिट के उसके शरीर में हर अंग में दिमाग है और इंतना ज्यादा दिमाग होने केबावजूद वो बददिमाग़ नहीं है. विनम्र बहुत है और सबसे झुक कर मिलता है और मिलकर तनतानहीं है. इसीलिए लोग कहते हैं कि बहुत जल्द वो कॉलेज की नौकरी छोड़ेगा और मुम्बई मेंफ्लैट बुक करा कर आराम से कविताई करेगा. एक कवि मैं स्वयं था - बसंत आर्य. एककवयित्री भी थी- कुसुम जोशी. ये कई जगहों पर अपनी टाँग फँसाये रखती हैं . सीरियलबनाती हैं. ऐड फिल्म बनाती हैं और हर रस की कवितायें करती हैं. गाती तो अच्छा हैही. वे इंतनी अच्छी दिखती हैं तो खुद अभिनय क्यों नहीं करती ये लोगों के लिएआश्चर्य का विषय है. आज ही उन्हे उनके लड़के ने नया नया मोबाईल दिया था जिसे कैसेओपरेट करना है ये प्रोग्राम के संचालक महोदय उन्हे सिखा रहे थे. नम्बर कैसे रिडायलकिया जाता है ये सीखने के बाद कुसुम जी ने कहा- आज के लिए बस इतना काफी है तो यूनूसखान ने कहा आज न छोड़ेंगे. विविध भारती के दो कॉम्पेयर_ यूनूस खान( अजी अपने वही ब्लाँगर रेडियोवाणीवाले.क्या आवाज है हुजूर की. जी करता है न कि सुनते रहें) जो यूथ्एक्स्प्रेशलेकर युवाओं में लोकप्रिय हैं और सखी सहेलीजिसे लेकर कांचन प्रकाशयुवतियों में चरचा का विषय बनी रहती है- की उर्जा को देख कर सारे कवि दंग थे. कांचनजी का चुलबुलापन अपने चरम पर था. कार्यक्रम की रिकार्डिंग में सभी कवि मजा लेते रहेक्योंकि ये मंच से हट कर एक अलग अनुभव था. बीच में हास्य कवियों के पितामह काकाहाथरसी की कुछ रिकार्डिंग सुन कर कवि धन्य हुए . वीरेन्द्र तरून जी के फाग छन्द सुनकर हम भी धन्य हुए. कार्यक्रम का प्रसारण हुआ 4.3.2007 को दिन में 3 बजे से पाँचबजे के दौरान. चिट्ठियाँ और फोन कॉल आये सिर्फ उन लोगों के जिन्हे हमलोगों ने फोन कर कर के कहा था कि जरूर सुनना ये प्रोग्राम क्योंकि इस टीवी के जमाने में रेडियो सुनता कौन है. और जो सुनते हैं उनके पास फोन नहीं है. सो न उन्हें मैने सुनने के लिए कहा और न ही सुनने के बाद उन्होने कहा कि उन्होने सुना. सुन रहे हैं न!



6 टिप्‍पणियां:

dpkraj ने कहा…

आपकी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।
दीपक भारतदीप

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

सुंदर और गहरी अभिव्यक्ति है ....

बेनामी ने कहा…

वाह क्या खूब

deepanjali ने कहा…

जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.

महावीर ने कहा…

बड़ा अच्छा लेख लगा। साक्षात ना सही पर आपके शब्द-जाल की पकड़ में कुछ
विकट खोपड़ियों से भी मिलने का अवसर मिल गया। मज़ा आगया।

Anita kumar ने कहा…

बंसत जी होली पर आप लोगों ने क्या समां बाधा होगा इसका अन्दाजा हम लगा सकते हैं,सेप्टेंबर के महिने में भी होली याद आ गयी। जो कविताएँ आप लोगों ने पढ़ी थीं वो भी लिख देते तो मज़ा आ जाता॥आशा है आप को याद होगीं॥हम सुनने को तैयार बैठे हैं।