16/10/07

किस्सा प्याज और अपनी लुटी हुई लाज का


पत्नी बोली- तुम क्या कमाते हो

असल में तो पडोस का शर्मा कमाता है

उसके बीवी रोज

एक किलो प्याज खरीदती है

और सारा परिवार खाता है

तुमसे तो कुछ लाने को बोलूँ

तो आंखें लाल पीली होने लगती है

और प्याज के नाम पर

पतलून ढीली होने लगती है.

मैने कहा- फिजूल के खर्चे मत किया कर

और प्याज के ज्यादा चर्चे मत किया कर

ये चीज ही ऐसी धांसू है

कि पहले तो खाते वक्त आती थी

अब भाव सुन कर ही आंखों में आंसू है

क्या बताउँ दफ्तर मे चपरासी तक

बास के साथ लंच खाता है

क्योंकि अपनी टिफिन से निकाल कर

प्याज तो वही खिलाता है

अब तो लगता है

दूल्हा दहेज मे प्याज ही मांगेगा

और गले में नोटों की जगह

प्याज की माला टांगेगा

लडकी का पिता लडके के आगे

सिर के पगडी के बजाय

प्याज ही रखेगा

और मेरी लाज रख लीजिए के बजाय कहेगा

जी मेरा प्याज रख लीजिए

सास बहू को ताना मारेगी

अरे वो तो किस्मत ही खराब थी

जो यहाँ पे रिश्ता किया

वर्ना हमने तो अच्छे अच्छे प्याज वाले को

घर मे घुसने तक नही दिया

बडे बडे नेता खुद को

सिक्कों के बजाय प्याज से तुलवायेंगे

और अच्छे अच्छे कवि

प्याज पर कवितायें सुनायेंगे.

राजनीतिक पार्टियाँ अपना चुनाव चिह्न

प्याज रखेगी

और घर घर जाकर

प्याज बांटने वाली पार्टी ही

सत्ता का स्वाद चखेगी.

क्योकि प्याज की मारी जनता कहेगी

न हमे राम राज चाहिए

न कृष्ण राज चाहिए

हमे तो सिर्फ सस्ता प्याज चाहिए.

9 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

वाह बसंत जी क्या धांसू कविता लिखी है. पढ़ते पढ़ते आँख में आंसू आ गए. प्याज की महिमा गाथा के लिए आप को बधाई.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

पोस्ट का मूल भी अच्छा है और प्याज भी!

बोधिसत्व ने कहा…

प्याज की करुण कथा भली है...

Anita kumar ने कहा…

ऐसे ही चला तो लोग प्याज घर की बाल्कनियों में उगाने की विधा मांगेगे, फ़िर वो आ गया तो बाल्कनियां मांगेगे, सोचिए हीरानन्दानी एड्वर्टाइज करेगा हमारी कॉलनी में मकान खरीदो, पिछ्वाड़े प्याज के खेत है, सदस्यों को रोज एक किलो मुफ़्त्…

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

कविता में प्याज की महिमा करुण है. प्रसंगवश
व्यंग्य अच्छा लगा की''अब तो लगता है दूल्हा दहेज मे प्याज ही मांगेगा और गले में नोटों की जगह प्याज की माला टांगेगा....!''बहुत सुन्दर!

Amarjeet Singh ने कहा…

आज के इस दौर मे, प्याज ने अच्छे अच्छो को रुलाया है, क्या नेता क्या अभिनेता, हर कोई रोया प्याज के असुओ मे, बचा न कोई मगरमच्छ आज तक, हँसाते हुए हँसाते हुए पहली बार देखा है,

नीरज गोस्वामी ने कहा…

हे प्याज पीड़ित मानव आप से गुजारिश है की जब भी आप को प्याज़ की याद सताए मन मचल मचल जाए तो खाकसार के गरीब खाने तशरीफ़ ले आयें आप को साबुत प्याज़ ,कटे हुए प्याज़ , प्याज़ का रस, भुना हुआ प्याज़, तला हुआ प्याज़, सब्जी मैं प्याज़ याने प्याज़ हर रूप मैं मिलेगा.
आप बहुत अच्छा लिखते हैं.
बधाई
नीरज

कौतुक रमण ने कहा…

Wah, wah wah. Bahut achhe.

Kavi-Rajbundeli ने कहा…

woh ! vasant bhai kabhi-kabhi kya khoob likhte ho.pyaaj ki kavita me tuvar ki daal se dikhte ho.

bahut-bahut badhaayee.
Kavi-Rajbundeli.